अगर आप बायोलॉजी विषय से संबंधित नोट्स सर्च कर रहे है तो आप बिलकुल सही पोस्ट पर आये है यहाँ पर हमने आपको कोशिका से संबंधित सम्पूर्ण नोट्स उपलब्ध करवाए है जिसमे आपको कोशिका की संरचना , कोशिकांग एवं सूक्षमकाय के बारे में क्लासरूम नोट्स अपलोड किये है जिन्हे पढ़ने के बाद आप अच्छे से अपने किसी भी एग्जाम की तैयारी कर सकते है | यह नोट्स विशेषकर उन विधार्थियों को बहुत काम आएंगे तो घर पर रहकर सेल्फ स्टडी कर रहे है
कोशिका
महत्त्वपूर्ण तथ्य
– 1665 ई. में सर्वप्रथम ‘रॉबर्ट हुक’ ने कोशिका को देखा, हालाँकि रॉबर्ट हुक ने मृत कोशिकाओं (Dead Cells) को देखा, जिनमें उन्हें ‘कोशिका भित्ति’ (Cell Wall) दिखाई दी, फिर भी कोशिका की खोज का श्रेय रॉबर्ट हुक को ही जाता है।
नोट
– रॉबर्ट हुक ने अपनी पुस्तक ‘माइक्रोग्राफिया’ में कोशिका के बारे में बताया।
– ‘मैल्पीघी’ (1661 ई. में) ने रॉबर्ट हुक से पहले कोशिकाओं को देखा और इन्हें ‘यूट्रिक्युलाई एवं सैक्यूलस (Utriculli & Saccules)’ कहा।
– वर्ष 1972-74 के दौरान ‘ल्यूविनहॉक’ ने सर्वप्रथम जीवित कोशिका (Living Cell) को देखा, इन्होंने RBC, जीवाणु, शुक्राणु को सर्वप्रथम देखा।
– 1831 ई. में ‘रॉबर्ट ब्राउन’ ने सर्वप्रथम ऑर्किड पोधों की जड़ों (Roots) की कोशिकाओं (Cells) में केन्द्रक (Nucleus) की खोज की।
– 1838 ई. में श्लीडेन एवं श्वान ने कोशिका सिद्धांत (Cell Theory) दी, जिसके अनुसार –
– सभी जीवों (Organisms) का निर्माण कोशिकाओं (Cells) से होता है।
– ये कोशिकाएँ जीवों के शरीर की क्रियात्मक (Functional) एवं संरचनात्मक (Structural) इकाई (Unit) होती है।
– 1855 ई. में ‘रुडोल्फ विर्चो’ (Rudolph Virchow) ने सर्वप्रथम बताया कि नई कोशिकाओं का निर्माण पूर्ववर्ती कोशिकाओं (Existing Cells) से होता है।
– रुडोल्फ विर्चो का कथन – “Omnis Cellula e Cellula”
कोशिका की संरचना
– संगठन (Composition), संरचना (Structure) के आधार पर कोशिका दो प्रकार की होती है-
(i) प्रोकैरियोटिक/असीमकेन्द्रकी कोशिका
(ii) यूकैरियोटिक/समीमकेन्द्रकी कोशिका
प्रोकैरियोटिक/असीमकेन्द्रकी | यूकैरियोटिक/समीमकेन्द्रकी |
– इनमें केन्द्रक (Nucleus) अल्प-विकसित तथा केन्द्रक के चारों ओर केन्द्रक झिल्ली (Nucleus Membrane) अनुपस्थित होती है। | – इनमें केन्द्रक सुविकसित (Well Developed) तथा केन्द्रक के चारों ओर दोहरा (Double) केन्द्रक आवरण पाया जाता है। |
– DNA नग्न अवस्था में होता है। | – DNA आवरण युक्त (Nuclear Membrane) होता है। |
– इसमें वृत्ताकार DNA जिसे प्लाज्मिड (Plasmid) कहते हैं तथा ये केन्द्रकाभ (Nucleoid) के बाहर पाया जाता है। (70S राइबोसोम) | -इसमें सर्पिलाकार (Spiral) तथा द्वि-रज्जुकी (Double Stranded DNA) केन्द्रक के अंदर पाया जाता है। (80S राइबोसोम) |
– कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) व केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm) में कोई विभेदन (Differentiation) नहीं होता है। | – कोशिकाद्रव्य एवं केन्द्रकद्रव्य एक-दूसरे से स्पष्ट रूप से विभेदित होता है। |
– इनमें विभिन्न प्रकार के कोशिकांग (Cell-Organelles) नहीं पाए जाते हैं। | – इनमें सुविकसित कोशिकांग जैसे – माइटोकॉन्ड्रिया, लवक (Plastid), लाइसोसोम, राइबोसोम, अंत: प्रद्रव्यी जालिका (E.R.), सेंट्रोसोम, गॉल्जीकाय आदि पाए जाते हैं। |
जन्तु कोशिका एवं पादप कोशिका में अन्तर
पादप कोशिका(Plant Cell) | जन्तु कोशिका(Animal Cell) |
– इनमें कोशिका झिल्ली के चारों ओर मुख्यतया सेल्युलोज से बनी कोशिका भित्ति (Cell-Wall) होती है। | – इनमें कोशिका भित्ति अनुपस्थित (Absent) होती है। |
– इनमें केन्द्रक तुलनात्मक रूप से छोटा व परिधि (Periphery) की ओर होता है। | – इनमें केन्द्रक बड़े आकार का व केन्द्रीय भाग में स्थित होता है। |
– इनमें रिक्तिकाएँ बड़े आकार की होती है। | – इनमें रिक्तिकाएँ छोटी-छोटी तथा कोशिकाद्रव्य में बिखरी होती है। |
– गॉल्जीकाय (Golgi bodies) अल्प विकसित व छोटे अकार के जिन्हें ‘डिक्टियोसोम’ कहते हैं। | – इनमें गॉल्जीकाय सुविकसित व बड़े आकार के होते हैं। |
– इनमें तारककाय (Centrosome) अनुपस्थित होता है। | – इनमें तारककाय उपस्थित होता है। |
कोशिका आवरण (Cell Coat)
कोशिका भित्ति (Cell Wall)
– ये कोशिका का बाह्यतम आवरण जो पादप कोशिकाओं (Plant Cells), कवक (Fungi), बैक्टीरिया में पाई जाती है।
– कोशिका भित्ति जंतु कोशिका में अनुपस्थित होती है।
– ये कोशिका द्वारा स्त्रावित तथा ये मृत/निर्जीव (Dead) लेकिन उपापचयी रूप से सक्रिय (Metabolically Active) होती है।
– औसत मोटाई = 0.1μ(माइक्रोमीटर) = 10-6 मीटर
– कोशिका भित्ति (Cell Wall) कई परतों/संस्तर से मिलकर बनी होती है।
मध्य संस्तर (Middle Lamella)
– ये दो कोशिकाओं के बीच पाया जाने वाला कोशिकीय संस्तर (Lamella) है।
– ये कैल्शियम (Ca) और मैग्नीशियम (Mg) के पेक्टेट लवणों (Pectate Salt) से बना है जो दो कोशिका को आपस में जोड़े रखने का कार्य भी करता है। अत: इसे ‘कोशिकीय सीमेंट’ (Cellular Cement) भी कहते हैं।
– फलों (Fruits) के पकने के समय लवण (Salt) जल में घुलने लगते हैं जिससे फल नरम (Soft) होने लगते हैं।
प्राथमिक संस्तर (Primary Lamella)
– पौधों में ये संस्तक मुख्यतया सेल्युलोज से बना होता है।
– कवकों (Fungi) से इसका निर्माण β-14 एसीटिल ग्लूकोसएमीन से होता है, जिसे कवक सेल्युलोज (Fungal Cellulase) भी कहते हैं ये काईटिन (कीटों के शरीर पर पाया जाने वाला बाह्य कंकाल) से समानता दर्शाता है।
– बैक्टीरिया में इसका निर्माण ‘पेप्टिडोग्लाइकेन’ से होता है।
– प्राथमिक संस्तर (Primary Lamella) में पेक्टिन पाया जाता है। इसी संस्तर में ‘एक्सपान्सिन’ प्रोटीन भी पाया जाता है जिससे इस प्राथमिक भित्ति में कुछ प्रसरण (Expansion) की क्षमता आ जाती है।
द्वितीयक संस्तर (Secondary Lamella)
– ये प्राथमिक भित्ति के अंदर की ओर परिपक्व कोशिकाओं (Mature Cells) में पाई जाती है।
– ये संरचना में लगभग प्राथमिक भित्ति जैसी ही होती है।
– द्वितीयक भित्ति में कुछ पदार्थों का जमाव पाया जाता है।
– लिग्निन – ये द्वितीयक भित्ति को कठोर (Hard) एवं मजबूत (Strong) बनाता है।
– सुबेरिन – ये मोम (Wax) के समान चिकना पदार्थ होता है, जो जल की पारगम्यता (Permeability) का नियंत्रण करता है।
– क्यूटिन – ये क्यूटिन पौधों में क्यूटिकल का निर्माण करता है जो वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) की क्रिया का नियमन करता है।
कोशिका झिल्ली (Cell Membrane)
– कोशिका झिल्ली की खोज ‘श्वान’ ने की।
– कोशिका झिल्ली को ‘प्लाज़्मा’ (Plasma Membrane) नाम ‘प्लोव’ ने दिया।
– ‘नगेली व क्रेमर’ ने इसे ‘कोशिका झिल्ली’ कहा।
– कोशिका झिल्ली सभी कोशिकाओं में पाई जाती है।
– इसकी औसत मोटाई 75A˙ (एंगस्ट्रॉम) है।
– यह जल के लिए अर्द्धपारगम्य (semi permeable), विलेयों (Solutes) के लिए चयनात्मक पारगम्य (Selective Permeable) होती है।
– कोशिका झिल्ली मुख्यतया वसा (फॉस्कोलिपिड्स) एवं प्रोटीन से बनी होती है।
– कोशिका झिल्ली की संरचना को समझाने हेतु ‘सिंगर एवं निकोल्सन’ ने ‘तरल-मोजेक मॉडल’ (Fluid Mosaic Model) प्रस्तुत किया।
नोट –
– कोशिका भित्ति में कुछ छिद्र (Pores) पाए जाते हैं, इन छिद्रों से होकर दो समीपस्थ कोशिकाओं (Adjacent Cells) में पदार्थों का आदान-प्रदान होता है। इन संरचनाओं को प्लाज्मोडेस्मेटा कहते हैं।
– ग्लाइकोकैलिक्स – कुछ कोशिकाओं जैसे RBC, युग्मक/Gametes (Sperm and egg) में एक बाहरी आवरण (ये कार्बोहाईड्रेट से बना)
कोशिकांग (Cell Organelles)
– कोशिका द्रव में उपस्थित सजीव पदार्थ।
– कोशिका (Cell) के विभिन्न कार्य करने के लिए कोशिका में विभिन्न कोशिकांग पाए जाते हैं, जो इस प्रकार हैं-
1. माइटोकॉण्ड्रिया (सूत्रकणिका)
– सर्वप्रथम इसे ‘कॉलिकर’ ने कीटों (Insects) की रेखित पेशियों (Straited Muscles) में देखा तथा इसे ‘सार्कोसोम’ कहा।
– फ्लेमिंग ने इसे ‘फिला’ कहा।
– अल्टमैन ने इसे ‘बायोप्लास्ट’ कहा।
– माइटोकॉण्ड्रिया नाम ‘सी. बेण्डा’ ने दिया।
– माइटोकॉण्ड्रिया की खोज ‘अल्टमैन’ ने की।
– सभी प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं तथा अवायवीय श्वसन (Anaerobic Respirin) करने वाली कोशिकाओं में माइटोकॉण्ड्रिया नहीं पाया जाता है।
– माइटोकॉण्ड्रिया को ‘सीकेविट्ज’ ने कोशिका का शक्ति-गृह (Power House of the Cell) भी कहा क्योंकि यहाँ पर श्वसन (Respiration) के दौरान A.T.P. (एडिनोसिन ट्राई फॉस्फेट) के रूप में ऊर्जा मुक्त होती है। (क्रेब्स चक्र के दौरान)
– उपापचयी रूप से सक्रिय कोशिकाओं (Metabolically Active Cells) में माइटोकॉण्ड्रिया की संख्या भी अधिक होती हैं, जैसे – पेशी कोशिकाओं (Muscle Cells) एवं यकृत (Liver) की कोशिकाओं में।
– माइटोकॉण्ड्रिया दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग है।
– माइटोकॉण्ड्रिया की आंतरिक झिल्ली (Inner Membrane) में कई अंगुलीनुमा उभार पाए जाते हैं, जिन्हें ‘क्रिस्टी’ कहते हैं। इन क्रिस्टी पर ‘ऑक्सीसोम कण’ पाए जाते हैं।
– ऑक्सीसोम कणों का गोलाकार शीर्ष – F-1 कण, जबकि आधारी भाग – F-0 कण
– F कणों पर श्वसन (Respiration) के दौरान E.T.S. (इलेक्ट्रॉन ट्रांसपोर्ट सिस्टम) चलता है।
– माइटोकॉण्ड्रिया में स्वयं का वृत्ताकार DNA राइबोसोम तथा RNA भी पाया जाता है, अत: इसे अर्द्धस्वायत्त कोशिकांग (Semiautonomous Cell Organelle) भी कहते हैं।
– स्वयं का DNA होने के कारण माइटोकॉण्ड्रिया की वंशागति मादा जनक से होती है।
– ‘थ्री-पेरेण्ट बेबी तकनीक’ माइटोकॉण्ड्रिया वंशागति पर ही आधारित है।
– स्तनियों (Mammals) के माइटोकॉण्ड्रिया में 55 S राइबोसोम पाया जाता है।
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2. लवक (Plastid)
– ये केवल पादप कोशिका (Plant Cells) में पाए जाने वाले कोशिकांग हैं, ये भी माइटोकॉण्ड्रिया के समान अर्द्धस्वायत्त कोशिकांग हैं तथा ये भी दोहरी झिल्ली (Double Membrane) युक्त हैं।
– लवक ऊर्जा संग्रहण (Energy Storage) से संबंधित है।
– ‘हेकल’ ने सर्वप्रथम लवकों का वर्णन किया तथा खोज का श्रेय भी हेकल को जाता है।
– कार्य के आधार पर शिम्पर ने लवकों के तीन प्रकार बताए-
(i) हरित लवक (Chloroplast)
(ii) वर्णी लवक (Chromoplast)
(iii) अवर्णी लवक (Leukoplast)
(i) हरित लवक (Chloroplast)
– ये हरे रंग के लवक होते हैं, इनमें हरित वर्णक (Pigment) क्लोरोफिल पाया जाता है।
– हरित लवक का मुख्य कार्य सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में CO2 व जल की सहायता से प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) कर सरल भोज्य पदार्थों का निर्माण करना है। इस क्रिया में O2 भी मुक्त होती है।
– हरित लवक में आंतरिक झिल्ली में वलन (Folds) बनने से थायलेकॉइड का निर्माण होता है। ये थायलेकॉइड एक के ऊपर एक सिक्कों के रूप में व्यवस्थित रहते हैं जिन्हें ‘ग्रेना’ कहते हैं।
– ग्रेना पर छोटे-छोटे कणों के समान ‘क्वाण्टासोम्स’ पाए जाते हैं जो प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) के दौरान ऊर्जा अवशोषित करते हैं।
– दो ग्रेना आपस में इन्टर ग्रेना द्वारा जुड़े रहते हैं।
– ग्रेना व इन्टर ग्रेना आंतरिक झिल्ली से घिरे आधारी द्रव्य में धँसे रहते हैं।
– ग्रेना पर प्रकाश संश्लेषण की प्रकाशिक अभिक्रिया (light Reaction) होती है जबकि स्ट्रोमा में अप्रकाशिक अभिक्रिया (Dark Reaction) होती है।
(ii) वर्णी लवक (Chromoplast)
– ये विभिन्न रंगों युक्त (वर्णक/Pigment के कारण) लवक हैं।
– फल, फूल एवं पत्तियों में हरे रंग के अलावा अन्य रंगों का पाया जाना इसी के कारण होता है।
– जब फल पकने लगते हैं तो उनमें हरित लवक वर्णी लवक में बदलने लगते हैं, जिससे फल रंगीन दिखाई देते हैं।
(iii) अवर्णी लवक (Leucoplast)
– ये रंगहीन लवक हैं, जिनका मुख्य कार्य भोजन संग्रहण करना होता है।
– ये सामान्यतया जड़ों (Roots) में पाए जाते हैं।
उदाहरण –
– वसा (Lipid) संग्रहण से संबंधित अवर्णीलवक – इलियोप्लास्ट
– स्टार्च संग्रहण से संबंधित अवर्णीलवक – एमायलोप्लास्ट
– प्रोटीन संग्रहण से संबंधित अवर्णीलवक – प्रोटीयोप्लास्ट
3. अंत:प्रद्रव्यी जालिका (E.R. – Endoplasmic Reticulum)
– इसे ‘गार्नियर’ ने सर्वप्रथम देखा तथा ‘इर्गेस्टोप्लाज़्म (Ergatoplasm)’ कहा।
– पोर्टर ने इसका विस्तृत अध्ययन कर E.R. नाम दिया। (खोजकर्ता)
– ये कोशिका (Cell) के आंतरिक कंकाल (Internal Skeleton) का निर्माण करती है।
– E.R. कोशिका के अंदर पदार्थों के परिवहन में सहायक है।
E.R. दो प्रकार की होती हैं-
(i) खुरदरी अंत: प्रद्रव्यी जालिका (R.E.R. – Rough Endoplasmic Reticulum) –
– इस E.R. पर राइबोसोम पाए जाते हैं, अत: ये खुरदरी है।
– R.E.R. प्रोटीन संश्लेषण से संबंधित है। (इस पर पाए जाने वाले राइबोसोम प्रोटीन संश्लेषण करते हैं।)
(ii) चिकनी अंत:प्रद्रव्यी जालिका (S.E.R. – Smooth Endoplasmic Reticulum) –
– इस E.R. पर राइबोसोम नहीं पाए जाते हैं अत: ये चिकनी होती है।
– ये कोशिका में ग्लायकोजन संग्रहण तथा स्टीरॉइड के संश्लेषण से संबंधित हैं।
4. गॉल्जीकाय (Golgy Body)
– ‘केमिलियो गॉल्जी’ ने गॉल्जीकाय की खोज की तथा इसके बारे में विस्तार से बताया।
– अन्य नाम – डाल्टन कॉम्प्लेक्स, बेकर्स बॉडी, लाइपोकॉण्ड्रिया।
– पौधों में अल्पविकसित, बिखरे हुए गॉल्जीकाय – डिक्टियोसोम
– यह जंतुओं में सुविकसित होते हैं।
– गॉल्जीकाय कोशिका में झिल्लियों (Membranes) के रूपांतरण का कार्य करता है।
– कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन युक्त पदार्थों के कोशिका से बाहर परिवहन (Transportation) में सहायक।
– इसे कोशिका का ट्रैफिक पुलिस (Transportation Manager of Cell) भी कहते हैं।
– ये लाइसोसोम तथा शुक्राणु (Sperm) के एक्रोसोम (Acrosome) का निर्माण करता है। (एक्रोसोम – एंजाइम जो इसके Egg में प्रवेश करने में सहायक है।)
– RBC, टेरिडोफायटा एवं ब्रायोफायटा के नर युग्मक (Male Gamets) परिपक्व चालनी नलिकाओं (Sieve Tubes) में गॉल्जीकाय नहीं होता है।
5. राइबोसोम – (पैलाडे कण)
– क्लाउडे ने सर्वप्रथम देखा।
– रॉबिन्सन एवं ब्राउन ने पादप कोशिकाओं में देखा।
– खोजकर्ता – पैलाडे (जंतु कोशिका में)
– ये कोशिका में कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm), R.E.R. पर माइटोकॉण्ड्रिया व लवक में भी पाए जाते हैं।
– इनका मुख्य कार्य कोशिका में ‘प्रोटीन संश्लेषण’ करना होता है।
6. लाइसोसोम (Lysosome)
– खोज – क्रिश्चियन डी डुवे ने की।
– नाम – नोविकॉफ़ ने दिया।
– इसे कोशिका की आत्मघाती थैली भी कहते है। (Suicidal Bags of Cell)
– इनमें कई जल-अपघटनीय एंजाइम्स पाए जाते हैं जो पाचन, अपशिष्ट पदार्थों के अपघटन में सहायक हैं तथा कोशिका का जीवनकाल पूरा होने पर ये लाइसोसोम फट जाते हैं तथा संपूर्ण कोशिका का पाचन कर देते हैं।
– निर्माण – गॉल्जीकाय
सूक्ष्मकाय (Microbodies)
– कोशिका में विभिन्न छोटे-छोटे सूक्ष्मकाय होते हैं जो कोशिका उपापचय (Metabolism) से संबंधित है। जैसे- परॉक्सीसोम, ग्लाइऑक्सीसोम, स्फेरोसोम
परॉक्सीसोम (Peroxisome) –
– पादप व जंतु दोनों कोशिकाओं में, E.R. से संबंधित।
– ये कोशिकाओं में H2O2 का निर्माण कर उपापचयी क्रिया में सहायक हैं।
– ये वसा उपापचय तथा श्वसन में भी सहायक।
ग्लाइऑक्सीसोम(Glyoxisomes) –
– खोज – बीवर्स।
– ये पादप कोशिकाओं (Plant Cells) में पाए जाते हैं।
– वसीय/तैलीय (Oily Seeds) में अंकुरण (Germination) के दौरान वसा को कार्बोहाइड्रेट में बदल देता है।
स्फेरोसोम(Spherosomes) –
– खोज – पार्नर
– केवल पादप कोशिकाओं (Plant Cells) मे ही पाए जाते हैं।
– उपापचयी एवं श्वसन से संबंधित होते हैं।
गति से संबंधित कोशिकांग
(i) पक्ष्माभ (Cilia) –
– श्वसन पथ की कोशिकाओं में, बैक्टीरिया की सतह पर पाया जाता है।
– इनकी संख्या 200 से 400 प्रति कोशिका होती है।
– यह आकार में छोटे होते हैं।
– कोशिका या इससे संबंधित पदार्थों की गति में सहायक होते हैं।
– इसका निर्माण ‘ट्यूब्यूलिन प्रोटीन’ से बनी सूक्ष्मनलिकाओं (Microtubules) से होता है।
– इसमें सूक्ष्मनलिकाओं का विन्यास (Arrangement) ‘9+2’ के रूप में होता है।
(ii) कशाभ (Flagella) –
– यह शैवालों के युग्मकों में पाया जाता है।
– इनकी संख्या 1 से 4 प्रति कोशिका होती है।
– यह आकार में बड़े होते हैं।
– कोशिका या इससे संबंधित पदार्थों की गति में सहायक होते हैं।
– इसका निर्माण ‘ट्यूब्यूलिन प्रोटीन’ से बनी सूक्ष्मनलिकाओं (Microtubules) से होता है।
– इसमें सूक्ष्मनलिकाओं का विन्यास (Arrangement) ‘9+2’ के रूप में होता है।
1. तारककाय (Centrosome)
– वॉन बेण्डन ने सर्वप्रथम देखा।
– वर्णन एवं खोज का श्रेय – बोवेरी को।
– ये उच्चतर पौधों (Higher Plants) में नहीं पाया जाता है।
– ये जंतु कोशिकाओं व निम्न पादपों (Lower Plants) में पाया जाता है।
– ये कोशिकांग अपनी स्वयं की प्रतिकृति (Copy) बना सकता है।
– ये तारककाय कोशिका विभाजन (Cell-Division) के समय तर्कु (Spindle) का निर्माण करता है।
– इसमें सूक्ष्मनलिकाओं का विन्यास ‘9+0’ के रूप में होता है।
2. रिक्तिका/रसधानी/Vacuoles
– ये कोशिका द्रव्यविहीन (Non-Cytoplasmic) संरचनाएँ हैं, जो कोशिकाद्रव्य से एक झिल्लीनुमा संरचना ‘टोनोप्लास्ट’ (Tonoplast) से घिरी हुई रहती हैं।
– रिक्तिका पादप कोशिकाओं व कवक (Fungus) में बड़े आकार की जबकि जंतु कोशिकाओं में छोटे आकार की होती है।
– ये रिक्तिकाएँ भोजन एवं अन्य तरल पदार्थों का संग्रहण कर सकती हैं।
– यह कोशिका में जल की मात्रा का नियमन (Regulation) करने में सहायक है। (परासरण नियमन)
– यह लाइसोसोम के साथ उत्सर्जी पदार्थों के कोशिका से बाहर उत्सर्जन में भी सहायक है।
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