मौद्रिक नीति – उद्देश्य , समिति एवं प्रकार और उपकरण 

मौद्रिक नीति
Share With Friends

बहुत सारी परीक्षाओं में भारतीय अर्थव्यवस्था ( Indian Economy ) से भी  पेपर में प्रश्न पूछे जाते है जैसे की UPSC , SSC CGL , GD एवं और भी बहुत सारी परीक्षाएं है इसलिए इस पोस्ट में हमने मौद्रिक नीति के नोट्स उपलब्ध करवाए गए है जिनसे आप घर बैठे अच्छी तैयारी कर सकते है यह भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण टॉपिक है जिसे आप नीचे पढ़ सकते है 

मौद्रिक नीति

– आर.बी.आई. द्वारा अर्थव्यवस्था में साख संतुलन या मुद्रा की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए जो नीति अपनाई जाती है उसे मौद्रिक नीति कहते हैं।
– जैसे रेपो दर, रिवर्स रेपो दर, लिक्विडिटी, समायोजन सुविधा जैसे कई अन्य मौद्रिक साधनों का उपयोग करके साख संतुलन बनाया जाता है।
– आर.बी.आई द्वारा वर्ष में 6 बार या 2 महीने में मौद्रिक नीति जारी की जाती है।

उद्देश्य 

1. अर्थव्यवस्था में साख संतुलन स्थापित करना।

2. मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना।

3. निवेश को प्रोत्साहित कर आर्थिक वृद्धि दर को गति प्रदान करना।

4. अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में समान वित्तीय सुविधा की उपलब्धता सुनिश्चित करना।

5. आर्थिक असमानता को समाप्त करना।

मौद्रिक नीति समिति-2016

– केन्द्र सरकार ने सितम्बर, 2016 में संशोधित आर.बी.आई अधिनियम की धारा 45ZB के तहत 6 सदस्यीय (MPC) कुल 6 सदस्य समिति जिसके तीनों सदस्य आर.बी.आई. द्वारा और 3 भारतीय सरकार द्वारा चयनित किए जाते हैं।

– सहमति बहुमत के आधार पर होगी, बराबरी की स्थिति में आर.बी.आई. गवर्नर का मत निर्णायक होता है।

वर्तमान समिति की संरचना – नवंबर, 2022

1. आर.बी.आई. गवर्नर – शक्तिकांत दास

2. आर.बी.आई. उपगवर्नर मौद्रिक नीति के प्रभारी – डॉ माइकल देवव्रत पात्रा

3. आर.बी.आई. के एक अधिकारी को केन्द्रीय बोर्ड द्वारा नामित किया जाता है – डॉ राजीव रंजन

4. मुबंई स्थिति इंदिरा गाँधी विकास अनुसंधान संस्थान के प्रोफेसर – आशिमा गोयल

5. अहमदाबाद के भारतीय प्रबंधन संस्थान में वित्त के प्रोफेसर – जयंत आर.वर्मा

6. कृषि अर्थशास्त्री और नई दिल्ली के नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के वरिष्ठ सलाहाकार – डॉ. शशांक भिड़े

मौद्रिक नीति के प्रकार (Type of monetary Policy)

– मुद्रा और ऋण की आपूर्ति, लागत और उपयोग का नियंत्रण और मुद्रास्फीति को स्थिर रख विकास को बढ़ावा देने के लिए मौद्रिक नीति बनाई जाती है।

1विस्तारवादी मौद्रिक नीति
– सस्ती मौद्रिक नीति (Cheep Monitory Policy)
– जब आर.बी.आई द्वारा ब्याज दरों में कमी करके अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा को बढ़ाया जाता है।

2. संकुचनवादी मौद्रिक नीति
– महँगी मौद्रिक नीति (Dear Monitory Policy)
– जब आर.बी.आई द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि करके अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा को कम किया जाता है।

मौद्रिक नीतियाँ- उपकरण

1. मात्रात्मक उपाय

– नकद कोष अनुपात (C.R.R. Cash Reserve Ratio)- रिजर्व बैंक का अनुसूचित बैंकों को उनके संपूर्ण जमा देयता, (माँग जमा तथा समय जमा) कि कोइ सीमा निश्चित नही की गई है। CRR = No Limit.

– CRR की दर जितनी ही ऊँची रहेगी बैंकों के पास प्राप्त जमा का उतना ही कम नकद शेष उधार देने व साख सृजन के लिए होगा-

– बैंक जमा का वह हिस्सा जिसे बैंक द्वारा आर.बी.आई के पास जमा करना होता है।

2. सांविधिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio)
– बैंक जमा का वह हिस्सा जिसे बैंक द्वारा ऋण के रूप में प्रदान नहीं किया जाये बल्कि अपने पास रखा जाता है।
– निवेश बढ़ाने के लिए SLR की दरों में कमी की जाती है। अर्थात् मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए SLR की दरों में वृद्धि की जाती है। SLR = Max 40%
– जब अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता हो तो SLR की दरों में कमी की जाती हैं।

3. सीमान्त स्थायित्व सुविधा
MSF – Marginal Standing Facility
– आर.बी.आई द्वारा बैंकों को उपलब्ध कराई जाने वाली अति अल्पकालीन ऋण सुविधा जो कि बैंक की शुद्ध माँग जमा का 1 प्रतिशत हिस्सा होता है। एम.एस.एफ. की दर हमेशा बैंक रेट के बराबर होती है।

तरलता समायोजन सुविधा-
– आर.बी.आई. द्वारा बैंकों को तरलता संतुलन के लिए उपलब्ध कराई जाने वाली सुविधा।

4. रेपो रेट (Repo Rate)
– आर.बी.आई द्वारा बैंकों को उनकी प्रतिभूति (Security) के बदले जिस दर पर अल्पकालीन उधार उपलब्ध कराया जाता है रेपो रेट कहलाती है जो कि 4 प्रतिशत है।

5. रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate)
– बैंक द्वारा जिस दर पर आर.बी.आई. को अल्पकालीन उधार प्रदान किया जाता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहा जाता है जो कि 3.35 प्रतिशत है। रिवर्स रेपो रेट, रेपो रेट से कम होती है। रिवर्स रेपो रेट में कमी होने से बैंकों को कम ब्याज मिलेगा।

6. बैंक दर (Bank Rate)
– जिस दर पर आर.बी.आई. द्वारा बैंकों को दीर्घकालीन उधार प्रदान किया जाता है, बैंक दर कहलाती है। वर्तमान में 4.25 प्रतिशत है।

7. खुले बाज़ार की प्रक्रिया (Open Market Operation)
– आर.बी.आई. द्वारा बाण्ड की खरीद बिक्री करके मुद्रा की मात्रा को नियंत्रित करना।

गुणात्मक उपाय

1. साख कोटा निर्धारण (Credit Rationing)

– इसके तहत आर.बी.आई. द्वारा बैंकों को अपनी उधार का 40 प्रतिशत हिस्सा पी.एस.एल. के रूप में देने की सिफारिश की गई।

– पी.एस.एल.- इसमें आठ सेक्टर शामिल किए गए है।

1. कृषि व कृषि से सम्बद्ध क्षेत्र

2. एम.एस.एम.ई.

3. शिक्षा, स्वास्थ्य, निर्यात, स्टार्टअप

2. सीमांत आवश्यकता का निर्धारण (Marginal Requirement)
– इस व्यवस्था के तहत बैंकों द्वारा गिरवी रखी गई वस्तुओं पर उपलब्ध कराए जाने वाले ऋणों की एक सीमा निर्धारित की जाती है।

3. चयनात्मक ऋण नियंत्रण (selective credit control)
– चयनात्मक ऋण नियंत्रण के द्वारा RBI बैंकों को निर्देश देती है कि वो कुछ विशेष क्षेत्र के व्यवसायी को ऋण न दे। (ऐसे व्यवसायी जो काला बाज़ारी करते है और वस्तुओं के मूल्यों को बढ़ाते हैं)

4. नैतिक दबाव (moral susation)
– इसके द्वारा RBI बैंकों को कुछ सलाह देती हैं। जैसे – RBI के द्वारा रेपो रेट घटाने पर बैंक भी अपना ब्याज दर घटाए।
– बैंक सरकारी प्रतिभूतियों में ज्यादा पैसा निवेश न करके ज्यादा पैसा ऋण में दे ताकि व्यवसाय को बढ़ावा मिले।

5. सजा व प्रत्यक्ष कार्यवाही
– यदि बैंक अपने CRR व SLR को मेंटेन नही रखती हैं तो RBI बैंकों पर पेनल्टी लगाती हैं —
पहली बार पेनल्टी = बैंक दर + 3%
दूसरी बार पेनल्टी = बैंक दर + 5%

ऊतक ( Tissue ) : परिभाषा एवं जंतु उत्तक

संधि की परिभाषा , उसके प्रकार एवं उदाहरण

गैर निष्पादन परिसम्पत्तियाँ (Non-Performing Assets)

गैर निष्पादन परिसम्पत्तियाँ (N.P.A.) –

– जब बैंक से ऋण लेने वाला व्यक्ति 90 दिनों तक ब्याज अथवा मूल धन का भुगतान करने में विफल रहता है तो इस प्रकार की ऊधारी/ ऋण को गैर निष्पादित परिसम्पत्ति की श्रेणी में डाल दिया जाता है।

– कृषि ऋण के लिए यह अवधि

1. अल्पकालिक फसल चक्र-दो फसल चक्र

2. दीर्घकालिक फसल चक्र-फसलचक्र (5 वर्ष से अधिक अवधि)

– आर.बी.आई. दिशा निर्देश के अनुसार NPA को तीन भागों में बाँटा गया है।
1. अवमानक परिसम्पत्तियाँ (Substandard Assets) – जब कोई लोन खाता एक साल या इससे कम अवधि तक एनपीए (NPA) की श्रेणी में रहता है तो उसे अवमानक परिसम्पत्तियाँ (Substandard Assets) की श्रेणी डाल देते हैं।
2. संदिग्ध परिसम्पतियाँ (Doubtful Assets)- जब लोन खाता एक साल तक अवमानक परिसम्पत्तियाँ (Substandard Assets) खाते के श्रेणी में रहता है तो उसे संदिग्ध परिसम्पतियाँ (Doubtful Assets) की श्रेणी में डाल देते हैं।
3. हानि सम्पत्तियाँ (Loss Assets)- संदिग्ध परिसम्पत्तियाँ जो लगातार 12 महीने तक बनी रहती है, जिसकी लोन वसूली की उम्मीद न के बराबर हो तो उसे  हानि संपत्तियाँ कहते हैं। यह ऋण लगभग असंग्रहणीय माना जाता है

NPA के कारण

– उधारकर्ता के स्तर के पर-

1. व्यापार में घाटा होना।

2. पूँजी गैर उत्पादक कार्यों में खर्च करना – जिस उद्देश्य के लिए उधार ली गई थी उसके अन्यत्र खर्च करना।

3. ऋण जानबूझकर ना चुकाने की प्रवृत्ति

4. उत्पादन में अनिश्चतता होना तथा कृषि कार्यों में प्राकृतिक आपदा का प्रभाव-बाढ़, अतिवृष्टि, ओला वृष्टि।

5. रियल स्टेट क्षेत्र का खराब प्रदर्शन।

– संस्थागत कारण (बैंक स्तर पर)-
1. उधारकर्ता के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं करना।
2. बैंक कर्मियों की रिश्वतखोरी के कारण घोटालेबाजी।
3. सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों में सरकार के हस्तक्षेप के कारण एन.पी.ए. की प्रवत्ति।
4. चुनावी मुद्दे
5. लोक कल्याण भावना

– अन्य कारण-
1. वैश्विक मंदी के कारण
2. महामारी का प्रभाव- कोविड-19 (कोरोना वायरस)

एन.पी.ए. के प्रभाव

– जब NPA बढ़ेगा तब वित्तीय संगठनों के द्वारा ऋण उपलब्ध कराने की क्षमता में कमी आयेगी जैसे –

1. निवेश दर घटेगी

2. आर्थिक उत्पादन में कमी आयेगी

3. रोज़गार- बेरोजगारी बढे़गी

4. आय-जीवन स्तर पर भी प्रभाव पड़ेगा।

– बैंक द्वारा घाटे की पूर्ति करने हेतु ब्याज दरों में वृद्धि की जाएगी  जिससे –

1. निवेश महँगा होगा

2. उत्पादन लागत बढ़ेगी

3. उत्पादन लागत बढ़ने के कारण उत्पाद कीमत भी बढ़ेगी

4. मुद्रास्फीति भी बढ़ेगी

1. ऋण वसूली न्यायाधिकरण- Debt Recovery Tribunal (DRT) 1993  

– उद्देश्य –

1. वित्तीय विवादों से संबंधित मामलों की सुनवाई करने हेतु।

2. जिला में न्यायाधीश के रूप में अधिकार ।

3. इससे मामलों का निपटारा सही समय पर होगा जिससे एन.पी. ए में कमी।

नोट- DRT के ज्यादातर मामले अटके पडे है जिसके कारण 2002 में (SARFAESI Act-2002) लागू किया गया।

2. (SARFAESI ACT-2002)-
– Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and enforcement of Security Interest Act-2002 इस अधिनियम के तहत बैंकों को बिना कानूनी कार्यवाही के सम्पत्ति नीलामी का अधिकार दिया गया।
प्रक्रिया –
– 1 लाख रुपए  से अधिक के मामलों पर SARFAESI ACT लागू।
– केवल बैंक पूर्व सूचना के रूप में नोटिस जारी किया गया।

नोट – केवल उन्हीं संपत्तियों को नीलाम किया जा सकता  था जिन्हें गिरवी रखकर  ऋण दिया गया हो।

परिसंपत्ति पुनर्निर्माण  कम्पनी (ARC)-
– ये एक ऐसी कंपनी है जो NPA को बैंकों से खरीद की कुल राशि से कम दाम पर लेती है और फिर इस NPA को उस व्यक्ति से वसूल करने की डील करती है, जिनके नाम पर उधार होता है।

3. मिशन इन्द्रधनुष -2015 (7 सूत्रीय योजना)

– ये बैंक सुविधा के लिए 7 सूत्रीय कार्य योजना

1. नियुक्ति

2. बैंक बोर्ड ब्यूरो

3. पूँजीकरण

4. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बोझ को कम करना

5. सुशासन

6. जवाबदेहता

7. सशक्तीकरण

– इसका उद्देश्य चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना, NPA में कमी करना और बैंकों का प्रदर्शन सुधारना हैं।

4. अक्षमता व दिवालियापन संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code) 2016

– पहले से उपस्थित दिवालिया कानून को प्रतिस्थापित कर 1 जून, 2016 को IBC लागू किया गया।

– Insolant- जिसमें ऋण भुगतान समय पर नहीं किया जा रहा।

– Bankrupt- कोर्ट द्वारा दिवालिया घोषित

– एन.पी.ए. समाधान हेतु कानून की जगह एक संहिता-(IBC) मामले का निपटारा 180 दिन तथा 90 दिन के अतिरिक्त करेंगी

IBC 2020 Reform

1. समाधान सीमा बढ़ाकर 1 वर्ष कर दी गई।

2. 1 लाख रुपए की न्यूनतम सीमा को बढ़ाकर 1 करोड़ कर दिया गया।

6. भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम-2018 (Fugitive Economic Offender Act-2018)

– 100 करोड़ लाख रुपए  से अधिक के गबन वाला व्यक्ति जिसे कोर्ट द्वारा अपराधी घोषित किया जाए और वह जब देश छोड़कर चला जाए और वापस आने से मना कर दे तो –

1. भगोड़ा घोषित व्यक्ति की सम्पत्ति नीलाम की जा सकती है।

2. कोर्ट में पेश होने पर भगोड़ा नहीं माना जाएगा।

3. नीलामी 180 दिन बाद की जाएगी।

5. उत्कर्ष 2022-
– आर.बी.आई. के विनियमन, पर्यवेक्षण में सुधार के लिए मध्यम अवधि के उद्देश्य से बनाई गई यह 3 वर्षीय रूपरेखा है।

6. प्रोजेक्ट सशक्त् (सुनिल मेहता समिति)

– सरकारी बैंकों की NPA की समस्या को दूर करने के लिए सशक्त नामक एक समग्र नीति लागू करने की घोषणा की गई।

– यह समग्र नीति सुनिल मेहता की अध्यक्षता में गठित समिति (जून, 2018) की रिपोर्ट के आधार पर तैयार की गई।

– 50 करोड तक के लोन को (SME) रेजोल्यूशन अप्रोच के तहत लिया जाएगा और 90 दिनों के भीतर इसका निपटारा किया जाएगा।

– 50 करोड़ से 500 करोड़ तक के NPA खातों में फँसे कर्ज के निपटान का फैसला अग्रणी बैंक की अगुवाई में लिया जाएगा।

– 500 करोड़ से अधिक फँसे ऋण के लिए असेट मैनेजमेंट कंपनी की स्थापना की जाएगी।

8. बैड बैंक – बैड बैंक एक ऐसा बैंक होता है जो कि मुख्य रूप से बैड लोन की रिकवरी में डील करता है। बैड बैंक, कमर्शियल बैंकों के NPA या बैड लोन को सस्ते दामों पर खरीद लेता है, फिर अपने हिसाब से इस बैड लोन की वसूली करता है।

– अर्थात् बैड बैंक, उस लोन की रिकवरी करता है जिसे मुख्य कमर्शियल बैंक ने अपनी अकाउंट बुक में बैड लोन घोषित कर दिया है या राईट ऑफ (Write Off) कर दिया है.

– भारतीय रिज़र्व बैंक ने भी बैड बैंक की स्थापना के सुझाव दिए थे और उसने ये नाम सुझाएँ थे; PAMC (Private Asset Management Company) और NAMC (National Assets Management Company).

9. पीसीए (प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन’) PCA

– बैंक कारोबार करते हुए कई बार वित्तीय संकट में फंस जाते हैं। इनको संकट से उबारने के लिए आर.बी.आई. समय-समय पर दिशा निर्देश जारी करता है और फ्रेमवर्क बनाता है। ‘प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन’ (पीसीए) इसी तरह का फ्रेमवर्क है, जो किसी बैंक की वित्तीय सेहत का पैमाना तय करता है।

– आर.बी.आई. को जब लगता है कि किसी बैंक के पास जोखिम का सामना करने को पर्याप्त पूँजी नहीं है, उधार दिए धन से आय नहीं हो रही या मुनाफा नहीं हो रहा है तो उस बैंक को ‘पीसीए’ में डाल देता है, ताकि उसकी वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए तत्काल कदम उठाए जा सकें। कोई बैंक कब इस स्थिति से गुजर रहा है, यह जानने के लिए आर.बी.आई.  ने कुछ इंडिकेटर्स तय किए हैं, जिनमें उतार-चढ़ाव से इसका पता चलता है। जैसे सी.आर.ए.आर., नेट एन.पी.ए. और रिटर्न ऑन एसेट्स।

अगर आपकी जिद है सरकारी नौकरी पाने की तो हमारे व्हाट्सएप ग्रुप एवं टेलीग्राम चैनल को अभी जॉइन कर ले

Join Whatsapp GroupClick Here
Join TelegramClick Here

मौद्रिक नीति : यह पोस्ट आपको कैसी लगी नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताये एवं अपने दोस्तों  शेयर करें अगर आप ऐसे ही नोट्स के साथ फ्री में घर बैठे तैयारी करना चाहते है तो गूगल पर Missionssc.in लिखकर जरूर सर्च करें 

3 thoughts on “मौद्रिक नीति – उद्देश्य , समिति एवं प्रकार और उपकरण ”

  1. Pingback: राष्ट्रीय आय : परिभाषा , महत्व एवं अवधारणा

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top