मुग़ल साम्राज्य का सम्पूर्ण इतिहास

मुगल साम्राज्य का सम्पूर्ण इतिहास
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अगर आपके सिलेबस में मध्यकालीन भारत का इतिहास विषय है तो यह पोस्ट आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है जिसमे हमने मुग़ल साम्राज्य का सम्पूर्ण इतिहास के बारे में नोट्स उपलब्ध करवाए है इसमें आपको बाबर , हुमायु , अखबर एवं अन्य सभी राजाओं का इतिहास पढ़ने को मिलता है इस पोस्ट को बिलकुल भी स्किप ना करें और अगर आप सेल्फ स्टडी करते है तो हमारे इन नोट्स को पढ़कर आप अपनी परीक्षा के लिए शानदार तैयारी कर सकते है 

मुग़ल साम्राज्य

– भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर था तथा वास्तविक संस्थापक अकबर को माना जाता है।

– सर्वाधिक समय तक शासन अकबर तथा सबसे कम समय तक शासन मुगल बादशाह रफी-उद्-जात (3 माह 7 दिन) ने किया।

बाबर (1526-30 ई.)

– 1494 ई. में ट्रांस ऑक्सियाना की छोटी-सी रियासत फरगना का बाबर उत्तराधिकारी बना।

– मध्य एशिया में कई अन्य आक्रमणकारियों की भाँति बाबर भी अकूत धनराशि के कारण भारत की ओर आकर्षित हुआ।

 बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का तथा अपनी माता की ओर से चंगेज खाँ का वंशज था।

– बाबर के पिता का नाम उमर शेख मिर्जा था। जो चगताई तुर्क था।

– 1519 ई. से 1524 ई. तक बाबर ने चार बार भारत पर आक्रमण किया।

– मध्य एशिया में अपनी अनिश्चित स्थिति के कारण इसने सिन्धु नदी को पार कर भारत पर आक्रमण किया था।

– 1518-1519 ई. में बाबर ने भेरा के शक्तिशाली किले पर आक्रमण किया, जो उसका प्रथम भारतीय अभियान था।

– इसमें पहली बार बारूद (तोपखाने) का प्रयोग किया गया था।

– 21 अप्रैल, 1526 को बाबर तथा इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ था।

– इस युद्ध में बाबर ने अपने 12,000 सैनिकों के साथ व एक हजार हाथियों से युक्त इब्राहिम लोदी की सेना को पराजित किया।

– इस युद्ध में बाबर ने उस्मानी विधि व तुलुगमा पद्धति का प्रयोग किया।

– इस युद्ध में इब्राहिम लोदी पराजित हुए तथा दिल्ली एवं आगरा तक का प्रदेश बाबर के अधीन हो गया।

– बाबर अपनी उदारता के कारण ‘कलंदर’ नाम से भी जाना जाता है।

– 27 अप्रैल, 1526 को बाबर ने दिल्ली में मुगल वंश के संस्थापक के रूप में राज्याभिषेक करवाया।

– दिसम्बर, 1530 में आगरा में बाबर की मृत्यु व उसे आगरा के नूर अफगान बाग (वर्तमान आराम बाग) में दफनाया गया। बाद में इसे काबुल में दफनाया गया।

– बाबर का मकबरा काबुल में है।

– खानवा युद्ध से पहले बाबर ने “जिहाद” का नारा दिया तथा काबुल के ज्योतिष “मोहम्मद शरीफ” ने बाबर के हारने की भविष्य वाणी की थी।

– आगरा से 40 किमी. दूर खानवा की लड़ाई  17 मार्च, 1527 ई. में बाबर तथा राणा सांगा के बीच लड़ी गई, जिसमें राणा सांगा पराजित हुए।

– इस युद्ध में सांगा के घायल होने पर झाला अज्जा ने छत्र धारण किया था।

– युद्ध में विजयी होने के बाद बाबर ने “गाजी” की उपाधि धारण की।

– खानवा की लड़ाई से दिल्ली – आगरा में बाबर की स्थिति मजबूत हुई और ग्वालियर तथा धौलपुर के किले पर भी अधिकार हो गया।

– खानवा के बाद बाबर ने चंदेरी के युद्ध में राजपूत सरदार मेदिनीराय को पराजित कर चंदेरी पर अधिकार कर लिया।

– 1529 ई. में बाबर ने बनारस के निकट गंगा नदी पार करके घाघरा नदी के निकट अफगानों और बंगाल के नुसरतशाह की सेनाओं का सामना किया।

– बाबर की मातृभाषा चगताई तुर्की थी।

– बाबर की आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ का विश्व साहित्य के शास्त्रीय ग्रन्थों में स्थान है। बाबरनामा (तुर्की भाषा में) का फारसी भाषा में अनुवाद ‘रहीम-खान-ए-खाना’ ने किया।

घाघरा का युद्ध (6 मई 1529 ई.)

– यह युद्ध बाबर व बिहार के अफगान सरदार महमूद लोदी के मध्य हुआ जिसमें बाबर विजयी हुआ था।

– यह युद्ध मध्यकाल का प्रथम युद्ध जो थल व जल पर लड़ा गया था।

हुमायूँ (1530-1556 ई.)

– हुमायूँ 1530 ई. में 23 वर्ष की आयु में आगरा में गद्दी पर बैठा।

– इसके सामने अनेक समस्याएँ थीं-प्रशासन को सुगठित करना, आर्थिक स्थिति ठीक करना, अफगानों को पूरी तरह दबाना तथा पुत्रों में राज्य बाँटने की तैमूरी प्रथा।

– हुमायूँ का छोटा भाई कामरान काबुल और कंधार का प्रशासक था।

– कामरान ने लाहौर तथा मुल्तान पर आधिपत्य जमा लिया था।

– 1531 ई. में कालिंजर अभियान के अंतर्गत हुमायूँ ने बुंदेलखंड के कालिंजर दुर्ग पर घेरा डाला।

– 29 जून, 1539 में चौसा की लड़ाई में हुमायूँ शेर खाँ से पराजित हो गया था।

– हुमायूँ ने गंगा नदी में कुंदकर “निजाम” नामक भिश्ती की सहायता से जान बचाई।

– 17 मई, 1540 में कन्नौज की लड़ाई में अस्करी तथा हिन्दाल कुशलतापूर्वक शेर खाँ से लड़े लेकिन मुगल पराजित हुए।

– अंततः हुमायूँ ने ईरानी शासक के दरबार में शरण ली तथा 1545 ई. में ईरानी शासक की सहायता से काबुल तथा कंधार को प्राप्त किया।

– हुमायूँ 1555 ई. में सूर साम्राज्य के पतन के बाद दिल्ली पर पुनः अधिकार करने में सफल हुआ।

– हुमायूँ सप्ताह के सात दिन, अलग-अलग रंग के कपड़े पहनता था। हुमायूँ का मकबरा दिल्ली में हाजी बेगम द्वारा बनवाया गया। इसे ताजमहल का पूर्वगामी भी कहा जाता है।

अकबर (1556-1605 ई.)

– हुमायूँ जब बीकानेर से लौट रहा था तो अमरकोट के राणा ने उसकी सहायता की थी।

– अमरकोट के राणा वीरसाल के महल में ही 15 अक्टूबर, 1542 में अकबर का जन्म हुआ था।

– 14 फरवरी, 1556 में कलानौर में अकबर की ताजपोशी 13 वर्ष 4 महीने की अवस्था में हुई थी।

– बैरम खाँ को खान-ए-खाना की उपाधि प्रदान की गई तथा राज्य का वकील बनाया गया।

– 5 नवम्बर, 1556 में हेमू के नेतृत्व में तथा मुगलों के बीच पानीपत की दूसरी लड़ाई हुई जिसमें हेमू पराजित हुआ एवं मारा गया।

– बैरम खाँ लगभग 4 वर्ष तक (1556-1560 ई.) अकबर के साम्राज्य का सरगना रहा।

– अकबर ने लड़के व लड़कियों की विवाह की आयु 16 व 14 वर्ष तय की।

– 1574-76 ई. में अकबर ने बिहार तथा बंगाल को मुगल साम्राज्य में शामिल किया।

– अकबर ने महाराणा प्रताप से सन्धि हेतु क्रमश: चार सन्धि प्रस्तावकों  जलाल खाँ (1572 ई.), मानसिंह (1573 ई.) भगवन्तदास (1573 ई.), टोडरमल (1573 ई.) को भेजा, लेकिन ये असफल रहे।

– हल्दीघाटी युद्ध का आँखों देखा वर्णन बदायूँनी ने किया।

– 18 जून, 1576 को मुगल सेना तथा मेवाड़ के शासक राणा प्रताप की सेना के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ।

– कर्नल जेम्स टॉड ने हल्दीघाटी को मेवाड़ का मैराथन कहा तथा दिवेर युद्ध को मेवाड़ की थर्मोपल्ली कहाँ है।

– अबुल फजल के अनुसार हल्दीघाटी का युद्ध “खमनोर” में तथा बदायूँनी के अनुसार “गोगुंदा” में हुआ था

– 1601 ई. में असीरगढ़ के किले को विजित किया गया, जो कि अकबर का अंतिम सैनिक अभियान था।

– 1602 ई. में सलीम (जहाँगीर) के निर्देश पर ओरछा के बुंदेला सरदार वीरसिंह ने अबुल फजल की हत्या कर दी।

– 1605 ई. में अतिसार रोग से अकबर की मृत्यु हो गई थी।

– अकबर का मकबरा आगरा के समीप सिकन्दरा में है।

– अकबर ने 1570 ई. में नागौर दरबार का आयोजन किया था।

– 1575 ई. में अकबर ने अपनी नयी राजधानी फतेहपुर सीकरी (आगरा) में इबादतखाना (प्रार्थना भवन) बनवाया।

– इबादतखाने में धार्मिक विषयों पर वाद – विवाद होता था।

– 1578 ई. में इबादतखाना को सभी धर्मों के लिए खोल दिया गया था।

– 1579 ई. में अकबर ने मुल्लाओं से निपटने के लिए और अपनी स्थिति को ओर मजबूत बनाने के लिए मजहर की घोषणा की।

– महजर का प्रारूप शेख मुबारक ने तैयार किया था।

– मजहर की घोषणा के बाद अकबर ने सुल्तान-ए-आदिल की उपाधि धारण की।

– 1582 ई. में इबादतखाना को बंद कर दिया।

– बदायूँनी अकबर का घोर आलोचक था।

– 1582 ई. में अकबर ने विभिन्न धर्मों के सार संग्रह के रूप में ‘दीन-ए-इलाही’ की घोषणा की, जो एकेश्वरवाद पर आधारित थी।

– दीन-ए-इलाही का प्रधान पुरोहित अबुल फजल था।

– विन्सेन्ट स्मिथ के अनुसार दीन-ए-इलाही अकबर की मूर्खता का प्रतीक था, बुद्धिमानी का नहीं

– शेख अहमद सरहिनदी ने अकबर की उदारवादी नीतियों की आलोचना की थी।

– अबुल फजल के अनुसार 1564 ई. में गैर-मुसलमानों से वसूल किए जाने वाले जजिया कर को अकबर ने समाप्त कर दिया, जबकि बदायूँनी के अनुसार 1599 ई. में जजिया कर समाप्त किया था।

– 1571 ई. में फतेहपुर सीकरी का निर्माण करवाकर राजधानी आगरा से फतेहपुर स्थानान्तरित की।

– प्रसिद्ध सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के साथ अकबर के घनिष्ठ संबंध थे।

– राल्फ फिंच अकबर के दरबार में आने वाला पहला अंग्रेज व्यापारी था।

– 1580 ई. में अकबर ने सम्पूर्ण साम्राज्य को 12 प्रान्तों में विभाजित किया था।

– टोडरमल राजस्व मामलों का विशेषज्ञ था। उसने जब्ती प्रथा को जन्म दिया।

– अकबर ने विट्टलनाथ को गोकुला तथा जैतपुरा की जागीरी दी।

– अकबर के नवरत्न में बीरबल, अबुल फजल, फैजी, टोडरमल, भगवानदास, तानसेन, मानसिंह, अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना आदि शामिल थे।

– महेशदास नामक ब्राह्मण को अकबर ने बीरबल की पदवी दी थी।

– अकबर ने लड़कों व लड़कियों के विवाह की आयु क्रमश: 16 वर्ष व 14 वर्ष निर्धारित की

1562 ई.युद्ध बन्दियों के लिए दास प्रथा की समाप्ति।
1563 ई.तीर्थ यात्रा कर की समाप्ति।
1564 ई.जजिया की समाप्ति।
1569-70ई.फतेहपुर सीकरी की स्थापना।
1574-75 ई.समाचार देने वाले गुप्तचर विभाग की स्थापना।
1574 ई.घोड़े दागने की प्रथा आरम्भ।
1575 ई.मनसबदारी व्यवस्था प्रारम्भ की गई।
1575 ई.फतेहपुर सीकरी में इबादत्त खाने का निर्माण।
1577 ई.सिख गुरु रामदास को 500 बीघा जमीन दी जहां बाद में अमृतसर नगर बसा।
1577-78 ई.सिजदा एवं पायबोस की शुरुआत
1578 ई.इबादत खाने को सभी धर्मों के लिए खोला गया।
1579 ई.महजर की घोषणा।
1580 ई.संपूर्ण साम्राज्य 12 सूबों में बाँटा गया
1580 ई.टोडरमल द्वारा दहसाला प्रणाली लागू।
1580 ई.फादर एक्वाबीवा के नेतृत्व में प्रथम पुर्तगाली जैसूट मिशन फतेहपुर सीकरी आया।
1582 ई.दास प्रथा की पूर्ण समाप्ति।
1582 ई.इबादत खाने में बहस पर रोक।
1582 ई.दीए-ए-इलाही की घोषणा।
1583 ई.इलाही संवत् या फसली संवत् नामक नया कैलेण्डर जारी किया गया।
1583 ई.कुछ निश्चित दिनों पर पशुवध पर रोक।
1588 ई.गज ए इलाही या बीघा ए इलाही की शुरुआत

जहाँगीर (1605-1627 ई.)

– जहाँगीर का जन्म फतेहपुर सीकरी में हुआ था।

– अकबर जहाँगीर (सलीम) को शेखोबाबा कहकर पुकारता था।

– जहाँगीर का राज्याभिषेक आगरा के किले में 1605 ई. में हुआ।

– देश के सामान्य कल्याण तथा उत्तम प्रशासन के लिए बारह आदेशों के प्रवर्तन के साथ उसके शासन का शुभारम्भ हुआ, इन्हें आइने-जहाँगीरी कहा जाता है।

– सिखों के पाँचवें गुरु अर्जुनदेव के साथ बागी शहजादा खुसरो तनतास में ठहरा था और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। अतः जहाँगीर ने पहले जुर्माना लगाया लेकिन जुर्माना अदा करने से इनकार करने पर गुरु अर्जुनदेव को फाँसी दे दी थी।

– 1613-1614 ई. में शहजादा खुर्रम के नेतृत्व में किया गया मेवाड़ अभियान सफल रहा तथा मेवाड़ के राणा ने 1615 ई. में मुगलों से संधि कर ली थी।

– जहाँगीर के शासनकाल की सबसे बड़ी असफलता फारस द्वारा कंधार पर अधिकार कर लेना था।

– इसके शासनकाल में न्याय की जंजीर नाम से एक सोने की जंजीर आगरा दुर्ग के शाहबुर्ज तथा यमुना के तट पर एक पत्थर के खम्भे के बीच लगवाई थी।

– कैप्टन हॉकिन्स 1608 ई. भारत में जहाँगीर के समय “हैक्टर” नामक जहाज से भारत आया था।

– 1611 ई. में मिर्जा गयास बेग की पुत्री मेहरूनिसा के साथ जहाँगीर का विवाह हुआ था।

– मेहरूनिसा के पति शेर अफगान की हत्या के बाद जहाँगीर ने उससे विवाह किया।

– सम्राट ने इसे ‘नूरमहल’ की उपाधि दी, जिसे बाद में बदलकर नूरजहाँ कर दिया गया। 1613 ई. में बादशाह बेगम की उपाधि भी दी गई।

– नूरजहाँ के प्रभाव से उसके पिता मिर्जा गयास बेग को “एत्माद्-उद-दौला” की उपाधि मिली।

– नूरजहाँ गुट में एत्माद्-उद-दौला अस्मत बेगम (नूरजहाँ की माँ) आसफ खाँ तथा शहजादा खुर्रम शामिल था।

– सर टॉमन्स रो जहाँगीर के समय 1615 ई. में भारत आया।

– जहाँगीर के शासनकाल में खुर्रम की अप्रत्याशित उन्नति तथा परवेज का पतन हुआ।

– अहमदनगर विजय के बाद जहाँगीर ने खुर्रम को “शाहजहाँ” की उपाधि प्रदान की इसने अहमदनगर के वजीर मलिक अम्बर को पराजित किया था।

– जहाँगीर ने बीजापुर के सुल्तान इब्राहीम आदिल शाह द्वितीय को “फर्जन्द” की उपाधि दी।

– 1623 ई. में खुर्रम ने जहाँगीर के कंधार जीतने के आदेश को मानने से इंकार कर दिया था।

– 1626 ई. में महावत खाँ ने विद्रोह कर दिया।

– शाहजहाँ के शासनकाल में पहला विद्रोह 1628 ई. बुन्देला नायक जुआर सिंह ने किया था।

– 1617 ई. में दक्कन अभियान की सफलता के बाद खुश होकर जहाँगीर ने खुर्रम को शाहजहाँ की उपाधि प्रदान की।

– जहाँगीर का मकबरा रावी नदी के किनारे शाहदरा (लाहौर) में है।

– जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा “तुजुक-ए-जहाँगीरी” लिखी जिसे मोतिमिद खाँ व मोहम्मद हादी ने पुरा किया।

– जहाँगीर ने सर्वप्रथम मराठों को अपने अमीर वर्ग में शामिल किया।

– बिलियम फिन्च ने अनारकली की कथा का वर्णन अपनी पुस्तक “लॉर्ड जनरल” में किया था।

– जहाँगीर के काल में भारत में तंबाकू की खेती प्रारम्भ हुई थी।

– नूरजँहा ने आगरा में अपने पिता “ऐतमादुद्दोला” का मकबरा” बनवाय।

– जो “पित्राड्यूरा शैली” में निर्मित प्रथम मकबरा है।

– जहाँगीर के शासनकाल में विलियम हॉकिन्स, विलियम फिंच, सर टॉमस रो, एडवर्ड टैरी आदि यूरोपीय यात्री आए थे।

– नूरजहाँ की माँ अस्मत बेगम को इत्र के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है।

शाहजहाँ (1628-1658 ई.)

– 1627 ई. में जहाँगीर की मृत्यु के समय शाहजहाँ दक्कन में था।

– शाहजहाँ के बचपन का नाम खुर्रम था उसकी माता जगत गोसाई (जोधाबाई) मोटा राजा उदयसिंह की पुत्री थी।

– शाहजहाँ ने “अर्जुनमन्दबानो बेगम” से 1612 ई. में विवाह किया जिसे बाद में मुमताज की उपाधि प्रदान की ताजमहल इसी की याद में बनवाया गया।

– शाहजहाँ सिख गुरु बाजबहादुर से बाज के विवाद पर झगड़ा हुआ था।

– कन्धार को भारत का सिंह द्वार कहा जाता था।

– शाहजहाँ ने “चहार तस्लीम” की प्रथा शुरू की।

– शाहजहाँ ने इलाही संवत् के स्थान पर वापिस “हिजरी संवत्” की शुरुआत की

– शाहजहाँ के सिंहासन “तख्त-ए-ताउस” का शिल्पकार बेबादल खाँ था।

– शाहजहाँ के शासनकाल में पड़े अकाल का वर्णन पीटरमुंडी ने किया था।

– धरमत (उज्जैन) के मैदान में 25 अप्रैल, 1658 को मुराद और औरंगजेब की संयुक्त सेना का मुकाबला दाराशिकोह की सेना, (जिसका नेतृत्व जसवंत सिंह तथा कासिम खाँ कर रहे थे) के मध्य हुआ। युद्ध का परिणाम औरंगजेब के पक्ष में रहा।

– उत्तराधिकार का एक अन्य युद्ध सामूगढ़ के मैदान में 29 मई, 1658 को हुआ, जिसमें दारा एक बार पुनः पराजित हुआ।

– औरंगजेब ने शाहजहाँ को 1658 ई. में आगरा के किले में कैद किया।

– शाहजहाँ के शासनकाल में यूरोपीय यात्री फ्रांसीस बर्नियर ने भारत की यात्रा की थी।

– शाहजहाँ के सिंहासन ‘तख्त-ए-ताऊस’ में विश्व का सर्वाधिक महंगा हीरा कोहिनूर लगा था।

– दारा ने सफीनत औलिया, सकीनत औलिया, मज्म-उल-बहरीन आदि पुस्तकें लिखी थी।

– दारा ने अथर्ववेद एवं उपनिषदों का फारसी में अनुवाद करवाया था।

औरंगजेब (1658-1707 ई.) :

– औरंगजेब का राज्याभिषेक 1658 ई. तथा 1659 ई. में दो बार हुआ था।

– आगरा पर अधिकार के पश्चात् 1658 ई. में उसने ‘आलमगीर’ की उपाधि धारण की थी।

– वीरता व साहस के लिए शाहजहाँ ने औरंगजेब को “बहादुर” की उपाधि भी दी

– औरंगजेब को कुरान कंटस्थ होने के कारण ”हाफिज“ भी कहा गया था।

– इसने सिक्कों पर कलमा अभिलिखित कराने की प्रथा समाप्त कर दी तथा पारसी नववर्ष नौरोज (नवरोज) का आयोजन भी बंद करवा दिया था।

– 1668 ई. में हिन्दू त्योहारों के मनाने पर रोक लगा दी।

– 1679 ई. में हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया था।

– औरंगजेब के इस्लामिक कट्टरता के कारण “जिन्दापीर” तथा सादगी से भरे जीवन के लिए “शाही दरवेश” भी कहा जाता था

– मुगलकाल में सर्वाधिक हिन्दू मनसबदार औंरगजेब के समय (33%) थे।

– 1669-70 ई. में गोकुल के नेतृत्व में मथुरा क्षेत्र में जाट किसानों, 1672 ई. में पंजाब के सतनामी किसानों तथा बुंदेलखंड में चम्पतराय और छत्रसाल बुंदेला के नेतृत्व में विद्रोह हुआ।

– औरंगजेब ने मारवाड़ के राजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र अजीतसिंह की वैद्यता को अस्वीकार कर दिया।

– दुर्गादास के नेतृत्व में मारवाड़ ने औरंगजेब के खिलाफ संघर्ष किया।

– 1686 ई. में बीजापुर को मुगल साम्राज्य में शामिल किया गया। तत्कालीन शासक सिकन्दर आदिलशाह था।

– 1687 ई. में गोलकुंडा का पतन हुआ, यहाँ का शासक अबुल हसन कुतुबशाह था।

– मदना तथा अकन्ना नामक ब्राह्मणों के हाथों में गोलकुंडा के शासन की बागडोर थी।

– 1686 ई. में जाटों ने पुनः राजाराम तथा उसके भतीजे चूड़ामन के नेतृत्व में विद्रोह किया। इन्होंने 1688 ई. में सिकन्दरा स्थित अकबर की कब्र की लूटपाट की।

– 1675 ई. में औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर को प्राणदंड दे दिया।

– औंरगजेब ने भी “गाजी” की उपाधि धारण की थी।

– औरंगजेब ने सतीप्रथा को पूर्णत: प्रतिबन्धित कर दिया था।

– तेगबहादुर ‘बाकसाद-ए-बाबा’ के नाम से भी जाने जाते थे।

– राठौड़ दुर्गादास तथा मराठा शासक शम्भाजी ने शाहजादा अकबर को शरण दी थी। अंततः शाहजादा अकबर फारस चला गया।

– इसने सती प्रथा को प्रतिबंधित किया तथा मनूची के अनुसार इसने वेश्याओं को शादी कर घर बसाने का आदेश दिया।

– 1669 ई. में बनारस स्थित विश्वनाथ मंदिर तथा मथुरा का केशवराय मंदिर तुड़वा दिया था।

– औरंगजेब का मकबरा दौलताबाद (खुल्दाबाद) में स्थित है।

मुगल प्रशासन

– मुगलकालीन प्रशासन मुख्यत: अरबी, फारसी व भारतीय प्रशासन का मिला-जुला रूप था।

– मुगल प्रशासनिक मॉडल का जनक (संस्थापक) अकबर था।

– मुगलकालीन राजस्व सिद्धान्त शरीयत पर आधारित था।

– कागज का प्रयोग प्रशासनिक कार्यों में अत्यधिक करने के कारण मुगल प्रशासन को पेपर स्टेट भी कहा गया है।

– आइने-अकबरी (अबुल फजल) के अनुसार बादशाह वही बनता है जो ईश्वर का प्रतिनिधित्व तथा पृथ्वी पर ईश्वर का दूत होता है।

– जिसमें एक साथ हजारों व्यक्तियों के गुण समाहित हो, इस सिद्धान्त को दैविय सिद्धान्त कहा जाता है।

– मुगल प्रशासन में बादशाह को सहायता देने हेतु एक मंत्रि-परिषद् होती थी, जिसे विजारत कहा जाता था।

– मुगल प्रशासन ‘केन्द्रिकृत’ निरंकुश प्रशासन था, जो खलीफा की सत्ता में विश्वास नहीं करता था।

– बाबर ने 1507 ई. में मिर्जा की उपाधि का त्याग कर बादशाह (पादशाह) की उपाधि धारण की यह उपाधि धारण करने वाला यह प्रथम शासक था। 

– मुगल काल से पूर्व दिल्ली सल्तनत काल के दौरान शासक सुल्तान की उपाधि धारण करते तथा वे खलीफा के अधीन रहकर शासन संचालित करते थे तथा खलीफा से जो आदेश प्राप्त करते थे जिसे “सनद” कहा जाता था।

– 1579 ई. में अकबर ने मजहर की घोषणा की। इस मजहर का अर्थ था अगर किसी धार्मिक विषय पर कोई वाद-विवाद की स्थिति प्रकट होती है तो इसमें बादशाह अकबर का फैसला सर्वोपरि होगा और यह फैसला सबको स्वीकार करना पड़ेगा।   

– मुगल सम्राट साम्राज्य का प्रमुख होने के साथ ही सर्वोच्च सेनापति, सर्वोच्च न्यायाधीश व इस्लाम का रक्षक और जनता का आध्यात्मिक नेता होता था।

– शासन में अपनी सहायता के लिए बादशाह विभिन्न मंत्रियों की नियुक्ति करता था तथा प्रत्येक मंत्री का अपना पृथक् कार्यालय होता था।

– मुगल कालीन केन्द्रीय प्रशासन में सर्वोच्च इकाई केन्द्र था। जिसका प्रमुख बादशाह व मंत्रि परिषद् होती थी।

– मुगलकालीन प्रशानिक क्रम-

प्रान्तीय (सूबा) शासन व्यवस्था :-  मुग़ल साम्राज्य

– बाबर और हुमायूँ के शासन की प्रान्तीय व्यवस्था विकसित नहीं हो पाई थी।

– मुगल कालीन प्रान्तीय प्रशासन के विकास का श्रेय अकबर को जाता है जिन्होंने 1580 ई. में मुगल साम्राज्य को सूबों में विभाजित किया तथा सूबों के प्रमुख अधिकारी सूबेदार व सूबाई दीवान होते थे।

सूबेदार :- यह प्रान्त का सर्वोच्च अधिकारी था इसे प्रान्त के सम्पूर्ण सैनिक व असैनिक अधिकार प्राप्त थे। इसे सूबेदार, नाजिम या सिपहसालार के नाम से जाना जाता था।

सूबाई  दीवान :- ये प्रान्त में राजस्व विभाग का संचालक होता था इसका प्रमुख कार्य आय-व्यय का लेखा-जोखा रखना तथा राजस्व संबंधी मुकदमों का निर्णय करना होता था।

सरकार (जिला) :- मुगल प्रशासन में सूबों (प्रान्त) को जिला या सरकार में बाँटा गया था जिसके प्रमुख अधिकारी फौजदार (कानून व्यवस्था) व अमलगुजार (राजस्व व्यवस्था) होते थे।

परगना :– सरकार से नीचे की इकाई परगना थी। सरकार (जिला) कई परगनों में विभाजित था इसके प्रमुख अधिकारी शिकदार (कानून व्यवस्था) व आमिल (राजस्व व्यवस्था) होते थे।

गाँव (मौजा) :– प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी। गाँव का प्रशासन मुकदम (कानून) व पटवारी (राजस्व) के नियन्त्रण में था।

वजीर (वकील या प्रधानमंत्री) :- यह बादशाह के बाद सबसे शक्तिशाली पद था जिसे सैनिक व असैनिक दोनों अधिकार प्राप्त थे। अकबर के काल में वजीर को वकील कहा जाने जगा। इसे “वकील-ए-मुतलक” कहा जाता था। बाबर व हुमायूँ के काल में वजीर का पद सबसे महत्त्वपूर्ण था।

दीवानकुल :- अकबर ने वकील (प्रधानमंत्री) की शक्तियों को कम करने हेतु 1565 . में इस पद का सृजन किया तथा इसके निम्न कार्य थे जैसे :-

     राजस्व व वित्त मामलों का प्रमुख होता था।

     राजस्व नीति का निर्माण करना।

     सूबई दीवान की नियुक्ति बादशाह द्वारा दीवान-ए-कुल की सलाह से की जाती थी।

दीवानखालसा :- इसका प्रमुख कार्य खालसा भूमि (सरकारी भूमि) की देखरेख करना।

दीवानजागीर :- इसका प्रमुख कार्य जागीर भूमि व इनाम भूमि की देखरेख करना।

दीवानवाकियात :- इसका प्रमुख कार्य रोजाने की आमदनी व खर्चों का लेखा-जोखा रखना।

मुस्तौफी :–  इसका प्रमुख कार्य लेखा परीक्षक (ऑडीटर जनरल) करना।

मुसरिफखजाना :- यह मुख्यत: खजांची होता था।   

मीर बख्शी:- यह सैनिक विभाग का प्रमुख होता था। मीर बख्शी सेनापति नहीं होता था क्योंकि सर्वोच्च सेनापति बादशाह स्वयं होता था।

मीर-ए-सामा:

– इस पद का सृजन अकबर द्वारा किया गया, औरंगजेब के काल में इसे “खाने सामा” कहा जाने लगा।

– अकबर के काल में मीर-ए-सामा दीवान के अधीन कार्य करता था, परन्तु जहाँगीर ने इसे स्वतंत्र मंत्री का दर्जा दे दिया।

– यह घरेलू मामलों का प्रधान होता था, बादशाह तथा महल की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता था।

सद्र-उस-सुदूर :-

– धार्मिक मामलों का प्रमुख होता था, जो बादशाह को सलाह भी देता था।

प्रमुख कार्य :-

1.    दान-पुण्य की व्यवस्था करना,

2.    विद्वानों को कर मुक्त भूमि प्रदान करना, वजीफा देना

3.    धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था करना व इस्लामी कानूनों का पालन करवाना।

4.    दान में दी गई भूमि (मदद-ए-माश) का निरीक्षण करना।

काजी-उल-कुजात:-

– मुख्य काजी (न्यायाधीश), इसकी सहायता हेतु “मुफ्ती” नियुक्त होते थे।

– मुफ्ती की व्याख्या के आधार पर ही काजी अपने निर्णय देता था, वर्तमान वकील के समान।

मुहतसिब:-

– इनकी नियुक्ति औरंगजेब के द्वारा की गई जो मुस्लिम वर्ग के लोगों के नैतिक चरित्र की जाँच करता था।

– इस्लाम के अनुसार आचरण करवाना मुख्य कार्य:-

– औरंगजेब ने बनारस फरमान के द्वारा हिंदू मंदिरों को तोड़ने का कार्य मुहतसिबों को दिया था।

   मुगलकालीन अन्य अधिकारी

अधिकारीविभाग/कार्य
1.    मीर-ए-आतिश (मीरआतिश)शाही तोपखाने का प्रमुख
2.    मीर-ए-बर्रवन विभाग का प्रमुख होता था
3.    मीर-ए-बहरजल सेना का प्रमुख व शाही नौकाओं की देखरेख करने
4.    दरोगा-ए-डाकचौकीडाकविभाग व गुप्तचर विभाग का प्रमुख
5.    मीर-ए-अर्जबादशाह के पास भेजे जाने वाले आवेदन पत्रों का प्रभारी
6.    मीर-ए-तोजकधार्मिक उत्सवों का प्रबंध करने वाला अधिकारी
7.    वाकिया-नवीससमाचार लेखक व गुप्तचर
8.    खुफिया नवीसगुप्त सूचनाएँ केन्द्र (बादशाह) तक पहुँचाने का कार्य
9.    हरकारासंदेश वाहक व गुप्तचर

– मनसबदारी प्रथा:- मनसबदारी प्रथा अकबर ने शुरू की थी।

– मनसब, दरअसल फारसी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब पदओहदा या दर्जा होता है।

– भारत में बिखरी राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर अकबर समझ गया था कि यहाँ शासन चलाने के लिए सैन्य प्रणाली पर आधारित एक शक्तिशाली प्रशासनिक व्यवस्था की जरूरत है, इसलिए उसने मनसबदारी व्यवस्था की शुरुआत की।

– इसके तहत उसने अधिकारियों की नियुक्तियाँ की और उनको सैनिक व असैनिक दोनों तरह के अधिकार सौंपे।

– मनसबदार दरबार में भी होते थे और दरबार के बाहर प्रांतों में भी।

– यह प्रथा दशमलव प्रणाली पर आधारित थी। इसकी सबसे छोटी इकाई 10 थी और सबसे बड़ी इकाई 10,000 थी।

– मनसबदारी प्रथा का आरम्भ अकबर ने 1575 ई. में किया।

– बाबर व हुमायूँ को प्रांतीय प्रशासन का गठन करने का समय नहीं मिला, अत: मुगलकाल में प्रांतीय प्रशासन का जनक “अकबर” को माना जाता है।

शासकप्रांत (सूबों) की संख्या
(1) अकबर1580 ई. सूबों की संख्या- 12

Note: अकबर के शासनकाल के अंतिम समय में दक्षिण अभियान बरार, खानदेश, अहमदनगर को जीतने के बाद – (15 सूबे) हो गए थे

Note: आइने अकबरी (अकबरनामा का तीसरा अध्याय) में सूबों की संख्या 12 बताई गई हैं।

(2)   जहाँगीर :-  सूबों की संख्या 15

Note : जहाँगीर ने कांगड़ा (हिमाचल) को जीतने के बाद उसे लाहौर सूबे में मिला दिया अत: सूबों की संख्या – 15

(3) शाहजहाँ  :         18 सूबे

(4) औरंगजेब  :        20/21

– शाहजहाँ ने कश्मीर, थट्टा व ओड़िशा नामक तीन नये सूबों को बनाया।

– मुगलकाल में सर्वाधिक सूबों की संख्या इसी के काल में थी

– औरंगजेब ने बीजापुर (1686) व गोलकुण्डा (1687)  में जीता इस प्रकार सूबों की संख्या – 20

Note : प्रो. राय चौधरी व मजूमदार ने औरंगजेब के काल में सूबों की संख्या 21 बताई हैं।

– सूबे के मुख्य प्रशासक को – सूबेदार/सिपहसालार/ नाजिम कहा जाता था।

सूबेदार :

– सूबे का सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी

– 1586 ई. में सूबेदार की शक्तियों को नियंत्रित करने हेतु अकबर प्रांतीय दीवान (सुबई) का पद सृजित।

Note : सूबेदार को संधि करने व मनसब  प्रदान करने का अधिकार नहीं था परन्तु गुजरात के सूबेदार राजा टोडरमल को अकबर ने राजपूतों से संधि करने व उन्हें मनसब प्रदान करने का अधिकार प्रदान किया था।

प्रांतीय दीवान :

– पद का सृजन अकबर द्वारा किया गया।

– प्रांतों में वित्त व राजस्व का सर्वोच्च अधिकारी था।

– यह शाही दीवान के प्रति उत्तरदायी था।

मीर-ए-अदल :

– इसकी नियुक्ति सर्वप्रथम अकबर द्वारा की गई थी।

– यह दान, (अनुदान) व उत्तराधिकार से संबंधित मामलों का निपटारा करता था।

– बड़े सूबों व उनकी राजधानियों में यह कार्य करने हेतु “कोतवाल” की नियुक्ति की जाती थी।

सरकार (जिला) प्रशासन :

– फौजदार : सर्वोच्च प्रशासक था।

– अमलगुजार : राजस्व व वित्त से संबंधित कार्य करना।

– खालसा भूमि से भी राजस्व वसूलता था।

– बितक्ची अमलगुजार के अधीन लिपिक, लगान व भूमि के कागज तैयार करवाना।

– खजानदार मुख्य खजांची होता था।

1.    शिकदार : सर्वोच्च प्रशासक होता था।

2.    आमिल : किसानों से राजस्व वसूल करने हेतु – अकबर ने 1574 ई. में 1 करोड़ दाम से अधिक राजस्व वाले परगनों में एक आमिल की नियुक्ति की, जिसे “करोड़ी” कहा जाता था।

– अमीन शाहजहाँ द्वारा नियुक्त – मालगुजारी का निर्धारण करने हेतु इसकी नियुक्ति की जाती थी।

– फौजदार मुख्य खंजाची होता था।

– कारकून परगने का लिपिक

– परगने का लेखा (रिकॉर्ड – फारसी) भाषा में रखा जाता था।

मुगलकालीन अर्थव्यवस्था

बाबर के सिक्के :- मुग़ल साम्राज्य

– बाबर ने काबुल में शाहरुख नामक चाँदी का सिक्का चलाया व कन्धार में बाबरी नामक चाँदी का सिक्का चलाया।

– मुगल शासकों ने सोने, चाँदी, व ताँबे के सिक्के चलाए थे।

शेरशाह सूरी:-

– शेरशाह सूरी ने 180 ग्रेन (14 ग्राम) का शुद्ध चाँदी का रुपया चलाया।

– शेरशाह सूरी ने ताँबे का सिक्का चलाया जिसे पैसा’ कहा जाता था।

– शेरशाह सूरी द्वारा प्रचलित रुपया आधुनिक भारत की मुद्रा का आधार माना जाता है।

अकबर के सिक्के:-

– मुगलकालीन अर्थव्यवस्था को सुव्यवस्थित करने का श्रेय अकबर को जाता है।

– अकबर ने 1577 ई. में दिल्ली में एक टकसाल की स्थापना करवाई तथा इसका अध्यक्ष ख्वाजा अब्बदुसम्मद को नियुक्त किया।

– अकबर ने ‘अब्बदुसम्मद’ को शीरी कलम की उपाधि प्रदान की।

– अबुल फजल के अनुसार 1577 ई. तक टकसालों की संख्या निम्न अनुसार थी-

सोने की टकसाल – 4

चाँदी की टकसाल – 14

ताँबे की टकसाल – 42

मुहर:-

– मुगलकाल के समय अकबर का मुहर नामक सिक्का सबसे ज्यादा प्रचलित था। यह सोने का सिक्का था जिसका मूल्य 9 रुपये के बराबर था तथा इसका वजन 169 ग्रेन (लगभग 13.30 ग्राम) था।

इलाही:-

– यह सोने का गोल सिक्का था जिसका मूल्य 10 रुपये के बराबर था।

शंसब:-

– यह अकबर द्वारा प्रचलित किए गए सिक्कों में से सबसे बड़ा सिक्का था।

– इसका उपयोग बड़े लेनदेनों में किया जाता था।

– इस सिक्के का मूल्य 101 तौला के बराबर होता था।

चाँदी के सिक्के:-

जलाली:- यह चाँदी का चौकोर सिक्का था।

ताँबे के सिक्के:-

दाम:-

– यह सिक्का रुपये के 40 वें भाग के बराबर होता था।

– अकबर एकमात्र ऐसा शासक माना जाता है जिसने सूर्य व चन्द्रमा के श्लोक भी अपने सिक्कों पर उपलब्ध करवाए।

– अकबर ने 1601 ई. में असीरगढ़ विजय के बाद सोने का एक सिक्का चलाया जिस पर एक तरफ बाज का अंकन तथा दूसरी तरफ टकसाल व सिक्का ढालने की तिथि का अंकन मिलता है।

– अकबर के सिक्कों पर ‘अल्लाहो अकबर’ व ‘जिले-जलाल हूँ’ का अंकन मिलता है।

जहाँगीर के सिक्के:-

निसार:-

– चाँदी का सिक्का जो रुपये का चौथा भाग होता था।

खैर-ए-काबुल:-

– यह सोने का सिक्का होता था।

सोने के सिक्के:-

– नुरेअफ्शा, नूरशाही, नूर सल्तानी, नूर दौलत, नूर करम, नूर मिहिर।

नोट :– जहाँगीर के काल का सोने का सबसे बड़ा सिक्का नूरशाही था जिसका मूल्य 100 तोल के बराबर होता था।

– जहाँगीर मुगलकाल का प्रथम शासक जिसने अपने सिक्के पर स्वयं की तस्वीर अंकित करवाई थी।

– जहाँगीर प्रथम ऐसा शासक था जिसने अपने चाँदी के सिक्कों पर 12 राशि चक्रों का अंकन करवाया।

शाहजहाँ:-

– शाहजहाँ ने रुपया व दाम के मध्य आना नामक एक नवीन सिक्का चलाया।

औरंगजेब:-

– औरंगजेब ने सिक्कों पर कलमा खुदवाना बंद कर दिया तथा मुगल काल में सर्वाधिक सिक्के औरंगजेब के काल में ढाले गए।

– जीतल का प्रयोग केवल हिसाब-किताब रखने में ही किया जाता था। इसे फूलूस या पैसा भी कहा जाता था।

– सिक्कों का मूल्य ह्रास भी लगाया जाता था जैसे-

– यदि कोई सिक्का एक वर्ष से अधिक पुराना हो गया हो, तो उस पर 3 प्रतिशत कटौती की जाती थी।

– यदि कोई सिक्का 2 वर्ष से अधिक पुराना हो गया हो तो उस पर 5 प्रतिशत कटौती की जाती थी।

माप-तौल इकाई :-

– अकबर ने पहले से प्रचलित ‘सिकन्दरी गज’ के स्थान पर इलाही गज प्रचलित करवाया था।

इलाही गज :-

– यह 41 अंगुल या 33.5 इंच का होता था।

– दक्षिण भारत में ‘कोवाड़’ नामक इकाई का प्रयोग किया गया।

– गोवा में ‘फैण्डी’ नामक इकाई का प्रयोग किया गया।

राजस्व व्यवस्था :-

– अकबर ने शेरशाह सूरी द्वारा प्रचलित ‘जाब्ती’ प्रणाली को बंद कर 1569 . में शिहाबुद्दीन अहमद की सिफारिश पर कनकूत  मुक्ताई प्रणाली प्रारंभ की।

– अकबर ने राजा टोडरमल को गुजरात का दीवान नियुक्त किया।

आइने दहसाला:- मुग़ल साम्राज्य

– 1580 ई. में इसे लागू किया गया।

– इसका उपनाम जाब्ती, बंदोबस्त अर्जी, टोडरमल व्यवस्था के नाम से जाना जाता था।

– इस व्यवस्था में पिछले 10 वर्षों की उपज तथा उन 10 वर्षों के दौरान उपज के प्रचलित मूल्य का औसत निकाल कर उस पर 1/3 भाग राजस्व लिया जाता था।

– राजस्व नकद के रूप में लिया जाता था।

नोट :- आइने दहसाला एक प्रकार से रैय्यतवाड़ी’ व्यवस्था थी जिसे किसान सीधे-सीधे सरकार को अपना राजस्व जमा करवाते थे।

मुगलकालीन भूमि को चार भागों में बाँटा गया था।

1.    पोलज:- प्रतिवर्ष बोई जाने वाली भूमि को पोलज कहा जाता था।

2.    परती:- 1 वर्ष छोड़कर बोई जाने वाली भूमि को परती कहा जाता था।

3.    चच्चर:- 3 या 4 वर्ष छोड़कर बोई जाने वाली भूमि चच्चर कहलाती थी।

4.    बंजर:- 5 वर्ष से अधिक समय से बोई नहीं गई भूमि, बंजर कहलाती थी।

मुग़ल साम्राज्य – अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

– शाहजहाँ के काल में भू-राजस्व एकत्रित करने हेतु ठेकेदारी प्रथा प्रारंभ की गई जिसे इजारा’ प्रणाली कहा जाता था।

– शाहजहाँ के काल में ही राज्य की 70 प्रतिशत भूमि जागीर के रूप में जागीरदारों को दे दी गई।

– शाहजहाँ के शासनकाल में मुर्शिदकुली खाँ ने, दक्षिण में टोडरमल की भाँति राजस्व व्यवस्था लागू की, अत: इसे दक्कन का टोडरमल कहा जाता है।

आय के अन्य स्रोत:-

1.    जजिया :- गैर मुसलमानों से वसूला जाने वाला कर।

2.    जकात :- मुसलमानों से वसूला जाने वाला कर (कुल आय का 2.5 प्रतिशत)

3.    खुम्स :- युद्ध की लूट में अर्जित किया गया धन लूट के माल को 20% राजा को तथा 80 प्रतिशत भाग लूटने वाली सैनिक टुकड़ी रखती थी।

4.    नजराना :- बादशाह को दी जाने वाली नकद भेंट, इसे नजर भी कहा जाता था।

5.    पेशकस :- अधीनस्थ राजाओं व मनसबदारों द्वारा बादशाह को दी जाने वाली नकद भेंट।

मुगलकालीन गाँव व भूमि के अन्य प्रकार:-

गैर अमली क्षेत्र:-

– ऐेसे क्षेत्र जो मुगल राजस्व व्यवस्था के अंतर्गत नहीं आते थे, परन्तु वहाँ के राजा राजस्व एकत्रित कर बादशाह को नजराना प्रस्तुत करते थे।

नानकर व बंथ:-

– कर मुक्त भूमि, जो जमींदारों को प्रदान की जाती थी।

– इस पर किसी भी प्रकार का राजस्व नहीं लिया जाता था।

मालिकान:-

– जब राज्य जमीनदार की सहायता के बिना सीधे राजस्व वसूल लेते थे तथा कुल उपज का 10वाँ भाग जमीनदार को देते थे उस भूमि को मालिकान कहा जाता था।

         गाँवों के प्रकार :-

  1. असली ग्राम:- सबसे प्राचीन व पूर्ण रूप से बसा हुआ गाँव।
  2. दाखिली ग्राम:- नव निर्मित ग्राम।
  3. एम्मा ग्राम:- ऐसे गाँव जिन्हें राज्य की तरफ से मुफ्त अनुदान दिए जाते थे।
  4. रैती ग्राम:- ऐसे गाँव जो जमींदारों के क्षेत्र से बाहर थे।

मुगलकालीन उपाधियाँ

व्यक्तिउपाधि
हीरविजय सूरिजगत गुरु
जिनचन्द्र सूरियुग प्रधान
मुल्ला मुहम्मद हुसैन कश्मीरीजरीं कलम
ख्वाजा अब्दुस्समदशीरी कलम
तानसेनकण्ठाभरण वाणी विलास
नरहरि चक्रवर्तीमहापात्र
बीरबलकवि प्रिय (कविराय)
मुहम्मद हाशिमखफी खाँ
लाल खाँ (संगीतज्ञ)गुण समुद्र
  
मुगलकालीन उपाधियाँ
व्यक्तिउपाधि
अर्जुनमन्द बानो बेगममलिका-ए-जमानी, मुमताज
गयास बेगएतमाद-उद्-दौला
मेहरून्निसानूरजहाँ, नूरमहल, बादशाह बेगम
मानबाईशाहबेगम
जमान बेगमहावत खाँ
फरीदशेर खाँ, शेरशाह
आदिलशाह (बीजापुर सुल्तान)फर्जन्द (जहाँगीर द्वारा)
अकबरशहंशाह, जिल्ले इलाही
दारा शिकोहशाह बुलन्द इकबाल
औरंगजेबजिन्दापीर, शाही दरवेश
खुर्रमशाहजहाँ, शाह सुल्तान
    
मुगलकालीन अनुवादित पुस्तकें
हरिवंश पुराणमौलाना शैरी
पंचतंत्र (अनवार-ए-सुहेली)अबुल फजल
अथर्ववेदहाजी इब्राहिम सरहिन्दी (इसे बदायूँनी ने प्रारम्भ किया।)
लीलावती, नल दमयन्ती वेदान्त, योग-वशिष्ठफैजी
भगवत पुराणराजा टोडरमल
महाभारत (रज्मनामा)मुल्लाशेरी, नकीब खाँ, बदायूँनी शेख सुल्तान हाजी (फैजी के निर्देशन में महाभारत का अनुवाद हुआ)
राजतरंगिणी(बहर-उल अस्माद)मुल्ला शाह मुहम्मद शाहाबादी
तजकमुक्कमल खाँ गुजराती
सिर्र-ए- अकबर (52 उपनिषदो का संग्रह)दारा शिकोह
रामायणबदूयँनी, नकीब खाँ, शेख सुल्तान, फैजी
सिंहासन बत्तीसीबदायूँनी
कालिया दमन(अयार ए दानिश)अबुल फजल
भगवद् गीता, योग वशिष्टदारा शिकोह
 
मुगलकालीन साहित्य
पुस्तक का नामलेखक
हबीब-उस-सियार, कानूने हुमायूँनीखोंद अमीर (ख्वांदामीर)
तारीखे रशीदीमिर्जा मुहम्मद हैदर दोगलत(बाबर का मौसेरा भाई)
रिसाल-ए-उसज(खत-ए-बाबरी)बाबर
वाकयात-ए-मुश्ताकी  (लोदी-सूरकाल)रिजकुल्लाह मुश्ताकी
तुजुके बाबरी (बाबर नामा)बाबर
तारीख-ए-दौलत-ए-शेरशाहीहसन अली खाँ
हुमायूँनामागुलबदन बेगम(बाबर की पुत्री)
तजकिरातुल वाकयातजौहर आफताबची(हुमायूँ का नौकर)
तारीख-ए-शाही(तारीख-ए-सलातीनी अफगान)अहमद यादगार(अफगान-मुगल काल)
दीवान (काव्य संग्रह)बाबर
मुबाइयानबाबर
अकबर नामा (आइने अकबरी)अबुल फजल
तारीख –ए-अकबरीआरिफ कन्धारी
नफाइस उल मासिरमीर उलाउद्दौला कजवीनी
मुन्तखब-उत-तवारीखअब्दुल कादिर बदायूंनी
तबकाते अकबरी/तारीखे निजामीख्वाजा निजामुद्दीन अहमद
तुहफात-ए-अकबरशाही अथवा तारीख ए शेरशाहीअब्बास खाँ सरवानी(शेरशाह की जानकारी)
शाहजहाँ नामाभगवान दास
मआसिरे रहीमीअब्दुल बाकी (अब्दुल रहीम खान खाना के संरक्षण में)
तारीख ए खाने जहानी मखजानी अफगानी (सूरवंश की  जानकारी)नियामत उल्ला
इन्तखाब-ए-जहाँगीरी शाहअज्ञात लेखक
इकबाल नामा-ए-जहाँगीरीमौतमिद खाँ
मआसिरे जहाँगिरीख्वाजा कामगार धरियत खाँ
तुजुके जहांगीरी(जहाँगीरी की आत्मकथा)जहाँगीर
अमले-सालेहमुहम्मद सालेह
अकबरनामा एवं तारीख ए हुमायुँ  शादीशेख इलाहदाद फैजी सरहिन्दी
पादशाह नामाअब्दुल हमीद लाहौरी
तारीख अल्फी (अकबर के आदेश पर एक हजार वर्ष का इतिहास लिखवाया गया)मुल्ला, मुहम्मद दाउद, नकीब खाँ, जाफर बेग, मौलाना अहमद, बदायूँनी
पादशाह नामामुहम्मद वारिस
शाहजहाँ नामामुहम्मद सदिक खान
वाकयातअसद बेग
तारीख-ए-फरिश्ता(गुलशन-ए-इब्राहीमी)मुहम्मद कासिम हिन्दूशाह (फरिशता)
शाहजहाँ नामाइनायत खाँ (मुहम्मद ताहिर)
पादशाह नामामोहम्मद अमीन कजवीनी
सियासत नामानिजामुल मुल्क तुसी
चहार-चमनचन्द्रभान
जुब्दातुल तवारीखनूरल हक
शाहजहाँ नामाइनायत खाँ (मुहम्मद ताहिर)
शाहजहाँ नामामुहम्मद सादिख खान
आलमगीरनामाहातिमखाँ
वाकयात-ए-आलमगीरीआकिल खाँ
आलमगीर नामामिर्जा मुहम्मद काजिम
मासिरे आलमगीरीमुहम्मद साकी मुस्ताक खाँ
फुतहात-ए-आलमगीरीईश्वरदास नागर
नुस्खा – ए- दिलकुशाँभीमसेन सक्सेना बुरहान पुरी
खुलासत उत तवारीखसुरजराय भण्डारी
मुन्तखब –उल –लुबाबखफी खाँ (मुहम्मद हाशिम)
मज्म-उल-बहरीनदारा शिकोह
सियारूल मुतखरीनगुलाम हुसैन (उत्तर मुगलकाल)
 
प्रमुख मुगलकालीन इमारतें
इमारतवास्तुकार
ताजमहलउस्ताद ईसा खाँ एवं उस्ताद अहमद लाहौरी
दिल्ली का लाल किलाहमीद एवं अहमद लाहौरी
फतेहपुर सीकरीबहाउद्दीन
हुमायूँ का मकबरामिर्जा गयास
आगरा का किलाकासिम खाँ

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हमारी मुगल साम्राज्य का सम्पूर्ण इतिहास इस पोस्ट में उपलब्ध करवाए गए नोट्स आपको कैसे लगे नीचे कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं एवं अगर आपको किसी विशेष टॉपिक के नोट्स चाहिए तो भी आप कमेंट के माध्यम से हमें बता सकते है हम जल्दी ही उसे भी अपलोड कर देंगे 

3 thoughts on “मुग़ल साम्राज्य का सम्पूर्ण इतिहास”

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