वित्तीय बाजार ( Financial Market ) क्या है ? महत्व और प्रकार 

Share With Friends

क्या आप जानते है वित्तीय बाजार ( Financial Market ) क्या है और यह कैसे काम करता है अगर नहीं तो आपको हमारी इस पोस्ट को ध्यान से और पूरा पढ़ना है जिसमे हमने सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध करवा दी है यह आपको जानना इसलिए जरुरी है क्योकि यह आपको भारतीय अर्थव्यवस्था विषय में पढ़ने के लिए मिलता है और काफी ज्यादा चांस होते है यहाँ से पेपर में प्रश्न पूछा भी जा सकता है 

वित्तीय बाजार ( Financial Market )

– वित्त बाज़ार वह व्यवस्था है जहाँ वित्त का आदान-प्रदान संभव होता है अर्थात् जहाँ बचतकर्ता से उधार लेने वाले की ओर वित्त का आदान-प्रदान संभव होता है।

– वित्त बाज़ार में विभिन्न वित्तीय उत्पादों एवं परिसंपत्तियों जैसे- मुद्राओं, शेयर, बॉण्ड, वित्तीय विषयों तथा वित्तीय उपकरणों का क्रय-विक्रय किया जाता है।वित्त बाज़ार के प्रकार-

– वित्त बाज़ार मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं-

(A) मुद्रा बाज़ार (Money Market)

– जहाँ 1 वर्ष से कम समय के लिए वित्त का आदान-प्रदान होता है वह मुद्रा बाज़ार कहलाता है।

– मुद्रा बाज़ार को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नियंत्रित व विनियमित किया जाता है। भारत में मुद्रा बाज़ार को दो भागों में बाँटा जा सकता है- (i) संगठित/औपचारिक मुद्रा बाज़ार (ii) असंगठित /अनौपचारिक मुद्रा बाज़ार

– वर्तमान में भारत में संगठित मुद्रा बाज़ार का निरंतर विस्तार होने के बावजूद भी आज असंगठित क्षेत्र विद्यमान है। असंगठित मुद्रा बाज़ार में देशी बैंकर्स, महाजन, साहूकार, सेठ इत्यादि की महत्त्वपूर्ण भूमिका हैं।

– भारतीय मुद्रा बाज़ार का आधुनिक क्षेत्र काफी संगठित तथा एकीकृत है। भारतीय मुद्रा बाज़ार के संगठित क्षेत्र में भारतीय रिजर्व बैंक, वाणिज्यिक बैंक, विदेशी बैंक, सहकारी बैंक, वित्तीय निगम, म्यूचुअल फंड इत्यादि को सम्मिलित किया जाता हैं।

(i) विनिमय पत्र (bill of exchange)

(ii) वचन पत्र (Promissory Notes)

(iii) व्यापारिक पत्र (Commercial Paper)

(iv) राजकोषीय पत्र (Treasury bill)

(i) विनिमय पत्र
– विनिमय पत्र अल्पकालीन रूप से पूँजी प्राप्त करने का साधन है जिस पर लिखी राशि देनदार द्वारा विनिमय पत्र धारक को उसके माँग करने पर उपलब्ध कराई जाती है।

(ii) वचन पत्र
– वचन पत्र अल्पकालीन उधार प्राप्त करने का साधन है। जिसमें लिखित राशि एक निश्चित समय पर उपलब्ध कराने का उल्लेख होता है।

(iii) व्यापारिक पत्र
– व्यापारिक पत्र बड़े व्यापारिक संगठनों द्वारा अल्पकालीन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जारी किए जाने वाले वित्तीय पत्र है।

(iv) राजकोषीय पत्र या ट्रेजरी बिल
– सरकारी अल्पकालीन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जारी किए जाने वाले विनिमय पत्र को राजकोषीय पत्र कहा जाता है। इनकी समयावधि 91 दिन, 182 दिन तथा 364 दिन हो सकती है।

भारतीय मुद्रा बाज़ार की कमियाँ

(i) एकीकरण का अभाव होना

– भारतीय मुद्रा बाज़ार को मूलत: दो भागों – संगठित क्षेत्र तथा असंगठित क्षेत्र में बाँटा गया है तथा इन दोनों की ही           

– कार्य – प्रकृति भिन्न-भिन्न है जिसके परिणामस्वरूप इसमें सहयोग कम तथा प्रतिस्पर्धा अधिक पाई जाती है। भारतीय मुद्रा बाज़ार के दोनों क्षेत्र एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं इसलिए उनकी वित्तीय गतिविधियाँ भी स्वतंत्र हैं।

(ii) उचित ब्याज दर संरचना का न होना
– भारतीय मुद्रा बाज़ार में एक यथोचित ब्याज दर संरचना का अभाव पाया जाता है जिसका मुख्य कारण विभिन्न बैंकिंग संस्थाओं के बीच समन्वय की कमी है।

(iii) मुद्रा बाज़ार में फंडों की कमी होना
– देश में बैंकिंग व्यवस्था के अपर्याप्त विकास, लोगों में बचत की कम प्रवृत्ति होने के कारण तथा निवेश अवसरों में कमी होने के कारण मुद्रा बाज़ार में फंडों की कमी की समस्या देखी जाती है।

(iv) संगठित बिल बाज़ार का न होना।

(v) ब्याज दरों में अधिक उतार-चढ़ाव।

(vi) अपर्याप्त बैंकिंग सुविधाएँ

– भारतीय मुद्रा बाज़ार को सशक्त बनाने हेतु उपाय

(i) मुद्रा बाज़ार ब्याज दरों का विनियमन करना।

(ii) नये मुद्रा बाज़ार उपकरणों को लागू करना।

(iii) क्षेत्र विशिष्ट पुनर्वित्त सुविधाएँ उपलब्ध कराना।

(iv) मनी मार्केट म्यूचुअल फण्डों को लागू करना।

(v) रेपो दर व रिवर्स रेपो दर को लागू करना।

(B) पूँजी बाज़ार (Capital Market)

– वह बाज़ार जहाँ दीर्घकालीन रूप से पूँजी का आदान-प्रदान किया जाता है, पूँजी बाज़ार कहलाता है।

– पूँजी बाज़ार अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों में बचत में वृद्धि करने एवं पूँजी के प्रवाह को उत्पादक क्षेत्रों की ओर निर्देशित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

– जहाँ 1 वर्ष से अधिक समय के लिए वित्त का आदान- प्रदान होता है वह पूँजी बाज़ार कहलाता है।

प्राथमिक पूँजी बाज़ार-
– वह बाज़ार जहाँ निवेशक तथा उधारकर्ता के मध्य प्रत्यक्ष आदान-प्रदान होता है प्राथमिक पूँजी बाज़ार कहलाता है।

द्वितीयक पूँजी बाज़ार-
– वह बाज़ार जहाँ निवेशक व उधारकर्ता के मध्य प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है द्वितीयक पूँजी बाज़ार या शेयर बाज़ार कहलाता है।

✤ पूँजी बाज़ार के वित्त स्त्रोत-

(i) बॉण्ड (Bond)
– वह पूँजी जो प्रतिभूति के आधार पर जारी की जाए तो उसे बॉण्ड कहा जाता है। जैसे- मसाला बॉण्ड, ग्रीन बॉण्ड, जंक बॉण्ड, गिल्ट एज बॉण्ड इत्यादि बॉण्ड के उदाहरण हैं।

मसाला बॉण्ड-
– जब भारतीय कम्पनियों द्वारा विदेशों में अपनी वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ₹ आधारित बॉण्ड जारी किया जाता है तो उसे मसाला बॉण्ड कहते हैं।
– मसाला बॉण्ड को सर्वप्रथम अन्तर्राष्ट्रीय वित्त संगठन (IFC) द्वारा परिभाषित किया गया।

ग्रीन बॉण्ड-
– कोई भी कम्पनी जो नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित हो तथा जिसके द्वारा हरित परियोजना कार्यक्रम संचालित किया जा रहा हो अगर उस कम्पनी द्वारा कोई बॉण्ड जारी किया जाता है तो उसे ग्रीन बॉण्ड कहा जाता है।
– यह हरित परियोजनाओं से जुड़ी हुई कम्पनियों जैसे नवीकरणीय ऊर्जा, निम्न कार्बन उत्सर्जन वाले वाहन, जल प्रबन्धन, ऊर्जा दक्षता, पर्यावरण संरक्षण आदि कार्यों से संबंधित हो उन कम्पनियों द्वारा जारी किए जाने वाले बॉण्ड ग्रीन बॉण्ड कहलाते हैं।
– भारत में वर्ष 2015 में यस बैंक द्वारा इस प्रकार के बॉण्ड जारी किए गए थे।

गिल्ट एज बॉण्ड-
– सरकार तथा बड़ी इकाइयों द्वारा जारी किए जाने वाले बॉण्ड जिनके डूबने का खतरा नहीं होता हैं, तथा इन बॉण्ड पर रिटर्न कम होता हैं परन्तु गारन्टेड होता है वह गिल्ट एज बॉण्ड कहलाते हैं। जैसे- सरकारी प्रतिभूति

जंक बॉण्ड-
– जंक बॉण्ड का तात्पर्य उन कम्पनियों के द्वारा जारी किए बॉण्ड से हैं जिनमें किया गया निवेश अधिक जोखिम भरा होता है तथा जिसके डूबने का खतरा बना रहता है। इन बॉण्ड का रिटर्न उच्च रहता है।

(ii) डिबेंचर
– डिबेंचर कम्पनी द्वारा जारी किए गए ऋण पत्र होते हैं जिसे कम्पनी द्वारा एक निश्चित ब्याज दर पर जारी किया जाता है तथा घाटे की स्थिति में भी कम्पनी द्वारा इसका भुगतान आवश्यक रूप से किया जाता है।
– डिबेंचर बिना प्रतिभूति जारी किया जाता है।

✤ डिबेंचर के प्रकार-

– डिबेंचर को मुख्यतया निम्न भागों में बाँटा गया हैं-

✤ अंशधारिता (Share) – वित्तीय बाजार ( Financial Market )

– कम्पनी की पूँजी का 1 भाग जितने बराबर भागों में कम्पनी द्वारा अपनी पूँजी को विभाजित किया जाता है वह शेयर कहलाता है।

 शेयरधारक को लाभांश का वितरण किया जाता है।

(A) अधिकारिता के आधार पर शेयर-

राष्ट्रीय आय : परिभाषा , महत्व एवं अवधारणा

विश्व के प्रमुख संगठन एवं उनके मुख्यालय

मौद्रिक नीति – उद्देश्य , समिति एवं प्रकार और उपकरण 

– पूर्वाधिकार शेयर से तात्पर्य वे शेयर धारक जो कम्पनी में लाभांश के प्रथम अधिकारी होते हैं।

– पूर्वाधिकार शेयर धारकों को निदेशक मण्डल में निर्णय का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।

– पूर्वाधिकार शेयर को दो भागों में बाँटा जाता है- परिवर्तनीय पूर्वाधिकार शेयर, अपरिवर्तनीय पूर्वाधिकार शेयर

परिवर्तनीय पूर्वाधिकार शेयर-

– वे पूर्वाधिकार शेयर जिन्हें समता अंश (Equity share)में बदला जा सकता है।

अपरिवर्तनीय पूर्वाधिकार शेयर-

– वे पूर्वाधिकार शेयर जिन्हें समता अंश में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है अपरिवर्तनीय पूर्वाधिकार शेयर कहलाते हैं।

2. समता अंश (Equity share)-
– वे शेयर धारक जो एक कम्पनी में हानि व लाभांश के बराबर के हिस्सेदार होते हैं समता अंशधारक कहलाते हैं।
– ये कम्पनी के निदेशक मण्डल में निर्णय के अधीन होते हैं।

1. IPO (Intial Public Offering)-

– कम्पनी द्वारा पूँजी प्राप्ति के लिए प्रथम बार जारी किए गए शेयर IPO कहलाते हैं।

2. F.P.O. (Follow Public Offering)-

– वह शेयर जिसे कम्पनी द्वारा भविष्य में जारी किया जाएगा वे शेयर FPO कहलाते हैं।

3. राइट शेयर (Right share)-

– यदि कम्पनी द्वारा अपने पूर्व शेयरधारकों के लिए शेयर जारी किए जाते हैं तो उन्हें राइट शेयर (Right share) कहा जाता है।

4. स्वेट शेयर (Sweat share)-

– कम्पनी द्वारा अपने कर्मचारियों को वेतन तथा बोनस के बदले जारी किए जाने वाले शेयर स्वेट शेयर कहलाते हैं।

❐ अन्य शेयर (Share buy back)-
– किसी कम्पनी द्वारा बेचे गए शेयर की पुन: खरीद Share buy back कहलाती है। किसी कम्पनी द्वारा शेयर की माँग बढ़ाने के लिए ऐसा किया जाता है। कोई भी कम्पनी 25% तक शेयर की ही पुन: खरीद कर सकती है।

❐ ब्लू चिप शेयर (Blue chip share)-
– आधारभूत सुविधा व उत्पादन कार्यों में संलग्न बड़ी कम्पनियाँ ब्लू चिप कम्पनी कहलाती है तथा इन कम्पनियों द्वारा जारी किए गए शेयर ब्लू चिप शेयर कहलाते हैं।

❐ स्क्रिप शेयर-
– किसी कम्पनी द्वारा अपने शेयर धारकों को नि:शुल्क रूप से उपलब्ध कराए गए शेयर स्क्रिप शेयर कहलाते हैं। इसे बोनस शेयर भी कहा जाता है।

❐ शेयर स्वेपिंग (Share Swaping)-

– यदि किसी एक कम्पनी को दूसरी कम्पनी द्वारा खरीदा जाता है तो खरीददार कम्पनी द्वारा खरीदी गई कम्पनी के शेयरों को अपने शेयरों में बदलना शेयर स्वेपिंग कहलाता है।

❐ शेयर प्लेजिंग-
– गिरवी रखे गए शेयरों की बिक्री जब निवेशक द्वारा भुगतान प्राप्त नहीं होने की अवस्था में की जाती है तो इसे शेयर प्लेजिंग कहा जाता है।

❐ शेयर बाज़ार (Stock Market)-

– वह स्थान जहाँ शेयरों की खरीद-बिक्री सम्पन्न होती है तथा निवेशक व कम्पनी में प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता है वह बाज़ार द्वितीयक बाज़ार या शेयर बाज़ार कहलाता है।

❐ द्वितीयक बाज़ार (Secondary market)-

– शेयर बाज़ार या द्वितीयक बाज़ार में पहले से सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों का क्रय-विक्रय किया जाता है। शेयर बाज़ार में उन्हीं प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है जो स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध होती हैं।

❐ प्रतिभूति (Security)-
– प्रतिभूति एक ऐसा प्रमाणपत्र होता है जिसका विक्रय करके वित्त की प्राप्ति की जाती है। प्रतिभूति दो प्रकार की होती हैं-
(i) शेयर प्रतिभूति
(ii) ऋण प्रतिभूति

❐ बाज़ार पूँजीकरण (M-cap)-
– किसी कम्पनी द्वारा जारी किए शेयरों का कुल बाज़ार मूल्य M-cap या बाज़ार पूँजीकरण कहलाता है।

❐ अधिकृत पूँजी (Authorised Capital)-
– किसी कम्पनी को जितने मूल्य के शेयर जारी करने की अनुमति सेबी (SEBI) द्वारा दी जाती है वह पूँजी अधिकृत पूँजी कहलाती है।

❐ निर्गम पूँजी (Issued Capital)-
– अधिकृत पूँजी का वह हिस्सा जो कम्पनी द्वारा शेयर के रूप में जारी किए जाते हैं।

❐ आवेदित पूँजी (Subscribed Capital)-
– निर्गम पूँजी का वह भाग जिस मात्रा में लोगों द्वारा शेयरों की खरीद की गई आवेदित पूँजी कहलाती है। आवेदित पूँजी दो प्रकार की होती हैं-
(i) चुकता पूँजी (Paid up Capital)
(ii) बकाया पूँजी (Un-Paid-up Captial)

❐ चुकता पूँजी (Paid up Capital)-
– आवेदन करते समय जिस पूँजी का भुगतान किया जाता है वह चुकता पूँजी कहलाती है।

❐ बकाया पूँजी (Un-Paid-up Captial)-
– शेयरों की कुल पूँजी का वह हिस्सा जिसका शेयर जारी करने के बाद भुगतान किया जाता है बकाया पूँजी कहलाती है।

❐ बुक बिल्डिंग प्रोसेस-
– किसी कम्पनी द्वारा जब निवेशकों के लिए शेयर जारी किए जाते हैं तब उस समय कम्पनी द्वारा उन शेयरों के अधिकतम व न्यूनतम मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया बुक बिल्डिंग प्रोसेस कहलाती है।

या

– बुक बिल्डिंग प्रोसेस वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कम्पनी अपने शेयरों का अधिकतम व न्यूनतम मूल्य का पूर्वनिर्धारण करती हैं। आवेदकों द्वारा न्यूनतम व अधिकतम मूल्यों के बीच शेयरों के लिए आवेदन किया जाता है।

❐ तेजड़िया (Bull)-
– तेजड़िया शेयरों की कीमत बढ़ाने के लिए काल्पनिक रूप से शेयरों की माँग को बढ़ाते हैं।
– शेयरों की माँग वृद्धि के परिणामस्वरूप शेयरों की कीमतों में वृद्धि होती है। शेयरों की कीमतों की वृद्धि से तेजड़िया (Bull) को लाभ प्राप्त होता है।

❐ मँदड़िया (Bear)-
– ये काल्पनिक रूप से शेयरों की माँग के बराबर शेयरों की कीमत में कमी करते हैं।

भारतीय प्रतिभूति व विनिमय बोर्ड (Security Exchange Board of India – SEBI)

– भारतीय शेयर बाजारों को नियंत्रित व विनियमित करने तथा एक संगठित स्वरूप प्रदान करने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा वर्ष 1988 में एक गैर-संवैधानिक निकाय के रूप में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना की गई थी।

– 12 अप्रैल, 1992 को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के तहत SEBI को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।

– सितंबर, 2015 में सेबी के अन्तर्गत एफएससी (Forward market commission) का विलय कर दिया गया जिसके परिणामस्वरूप कमोडिटी ब्रोकर भी SEBI ब्रोकर नियमों के अन्तर्गत शामिल हो गए। जिससे वायदा बाज़ार में अधिक पारदर्शिता आएगी।

SEBI के प्रवर्तक-
– IDBI + ICICI + IFCI

संरचना-

– अध्यक्ष – माधवी पूरी बुच

– सदस्य – 1 सदस्य = RBI द्वारा

– 2 सदस्य = वित्त व कानून मंत्रालय से

– 2 सदस्य = भारत सरकार के द्वारा प्रतिनिधि के रूप में

– 4 सदस्य = पूर्णकालीन

SEBI के मुख्य कार्य

(1) पूँजी बाज़ार पर नियंत्रण व नियमन करना

(2) निवेशकों को प्रोत्साहन प्रदान करना

(3) शेयर धारकों का पंजीकरण करना

(4) कम्पनी को पूँजी बाज़ार से वित्त उगाही हेतु शेयर जारी करने की अनुमति प्रदान करना

(5) पूँजी बाज़ार में गैर कानूनी रूप में होने वाली लेन-देन पर रोक व दण्डात्मक कार्यवाही करना

(6) निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए प्रशिक्षण व शोध सुविधा उपलब्ध कराना

(7) SEBI द्वारा नियंत्रित संगठनों को प्रोत्साहित करने का कार्य किया जाता है।

– देश में 7 राष्ट्रीय स्तर के व 19 प्रादेशिक स्तर के शेयर बाज़ार कार्यरत हैं-

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेन्ज (Bombay Stock Ex-change)

– स्थापना – 1875 ई.

– यह देश का पहला स्टॉक एक्सचेन्ज था

– यह विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा शेयर बाज़ार है।

– वर्ष 2002 में इसे राष्ट्रीय शेयर बाज़ार का दर्जा दिया गया था।

– बॉम्बे स्टॉक एक्सचेन्ज द्वारा निम्नसूचकांक (Index) जारी किए जाते हैं-

सेंसेक्स-
– यह बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक है। वर्तमान में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में 5500 से भी अधिक कंपनियाँ पंजीकृत हैं। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की शुरुआत 30 अग्रणी कंपनियों के शेयरों के आधार पर की गई थी। सेंसेक्स का आधार वर्ष 1978-79 हैं। सेंसेक्स को भारतीय स्टॉक बाज़ार का प्रतिनिधि सूचकांक माना जाता है।

राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेन्ज (National Stock Ex-change)

– स्थापना – वर्ष 1992

– संचालन – वर्ष 1994 से IDBI + LIC + GIC

– राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेन्ज द्वारा जारी किए जाने वाले सूचकांक (Index)

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज-

– वर्ष 1992 में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना की गई थी। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की मुख्य प्रवर्तक कंपनी IDBI (Industrial Development Bank of India) है। राष्ट्रीय शेयर बाज़ार का मुख्यालय मुम्बई है।

निफ्टी (Nifty)

– नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध प्रथम 50 सबसे बड़ी कंपनियों के आधार पर निफ्टी जारी किया जाता है। निफ्टी का आधार वर्ष 1995 तथा आधार मूल्य 1000 है।

यह 50 कम्पनियों का सूचकांक

विश्व के प्रमुख शेयर बाज़ार

क्र.स.शेयर बाज़ारदेश
1.डोव जोंसन्यूयॉर्क (यूएसए)
2.नैसडैकयूएसए
3.निक्कीजापान
4.ओस्लोनार्वे
5.शंघाईचीन
6.लंदन स्टॉक एक्सचेंजलंदन (ब्रिटेन)
7.वारसापौलेंड
8.टोरंटोकनाडा
9.वियनाऑस्ट्रिया
10.फ्रेंकफर्टजर्मनी

शेयर बाज़ार से संबंधित अन्य शब्दावली

प्राइवेट प्लेसमेंट (Private Placement)

– प्राइवेट प्लेसमेंट के अन्तर्गत कोई कंपनी अपने अंशपत्रों को किसी मध्यस्थ कंपनी या संस्था और किसी एजेंट द्वारा विक्रय करवाती है। प्राइवेट प्लेसमेंट के अन्तर्गत म्यूचुअल फंड, जोखिम पूँजी, बैंक इत्यादि को शामिल किया जाता है।

बैंकेक्स (Bankex)-
– मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज द्वारा 12 बैंकों के शेयरों की कीमत के आधार पर एक नया सूचकांक बैंकेक्स 1 जनवरी, 2002 को शुरू किया गया था।

वायदा बाज़ार (Future market)

– जब किसी प्रतिभूति की कीमत व लेने-देन की तिथि तथा अन्य शर्ते वर्तमान में ही निर्धारित हो जाएँ तथा प्रतिभूति का क्रय-विक्रय भविष्य में किया जाए तो उसे वायदा बाज़ार (Future market) कहा जाता है। वायदा बाज़ार की शीर्ष संस्था Forward market commission का SEBI में विलय कर दिया गया है। वायदा बाज़ार के मुख्य प्रकार हैं-

(i) वस्तु व्यापार एवं कमोडिटी एक्सचेंज

(ii) मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड

(iii) नेशनल कमोडिटी और डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड

(iv) इंडिया कमोडिटी एक्सचेंज लिमिटेड

(v) नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया

म्यूचुअल फंड (Mutual Fund)

– म्यूचुअल फंड के अन्तर्गत छोटे-छोटे निवेशकों की बचत को एकत्र करके उसे स्टॉक, बॉण्ड एवं अन्य प्रतिभूतियों में निवेश किया जाता है। म्यूचुअल फंड के माध्यम से छोटे निवेशकों को बिना जोखिम उठाए शेयर बाज़ार में निवेश से मिलने वाले लाभ प्रदान करवाए जाते हैं। भारत की सबसे बड़ी म्यूचुअल फंड कम्पनी UTI (Union Trust of India) है जिसकी स्थापना वर्ष 1963 में की गई थी।

पार्टिसिपेटरी नोट्स (Participatory Notes)

– यह एक उपकरण है जिसमें निवेशक या विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा बिना SEBI में पंजीकृत हुए भारतीय प्रतिभूतियों में निवेश किया जा सकता है। पार्टिसिपेटरी नोट्स में निवेश करने वाला निवेशक भारतीय प्रतिभूति का स्वामी नहीं होता हैं। वह विदेशी निवेशक होता है जिसे पार्टिसिपेटरी नोट्स जारी किये जाते है।

ऐंजल निवेशक (Angel Investor)

– वे निवेशक जो उद्यमियों को अपना व्यवसाय आरंभ करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं ऐंजल निवेशक कहलाते हैं। ऐंजल निवशकों को सेबी द्वारा प्रोत्साहन तथा रियायतें प्रदान की जाती हैं।

इनसाइडर ट्रेडिंग (Insider Trading)

– जब किसी कंपनी की गोपनीय सूचनाओं को रखने वाला व्यक्ति शेयरों का क्रय-विक्रय करता है, तो उसे इनसाइडर ट्रेडिंग कहते हैं। भारतीय प्रतिभूति व विनिमय बोर्ड द्वारा आंतरिक सूचनाओं के आदान-प्रदान करने पर नियंत्रण हेतु नए मानदंड निर्धारित किए गए हैं।

क्रैश (Crash)-
– जब किसी शेयर बाज़ार में शेयरों की कीमतों पर अचानक अप्रत्याशित और बहुत अधिक गिरावट हो जाती है तो ऐसी स्थिति को क्रैश कहा जाता है।

आर्बिट्रेज-
– आर्बिट्रेज के अंतर्गत किसी प्रतिभूति को एक बाज़ार से क्रय करके उसी समय उसे किसी दूसरे बाज़ार में अधिक मूल्य पर बेचकर लाभ कमाया जाता है। यह निवेशकों के लिए जोखिम रहित लाभ माना जाता है।

ब्लू चिप शेयर (Blue chip share)-
– ब्लू चिप शेयरों को ‘ग्रोथ शेयर’ भी कहा जाता है।

शेयर का निर्गमन (Issuance of share)

– किसी शेयर पर जो मूल्य लिखा होता है, वह उसका अंकित मूल्य होता है तथा कंपनी उसे जिस कीमत का शेयर बेचती है वह उसका आवंटित मूल्य होता है। शेयर का निर्गमन तीन प्रकार से किया जाता है-

(i) सम मूल्य पर निर्गमन (Issue at Par)-
– जब कम्पनी अंकित मूल्य पर शेयर को विक्रय करती है तो उसे सम मूल्य पर निर्गमन कहते हैं।

(ii) कटौती पर निर्गमन-
– जब कम्पनी अपने शेयर को उसके अंकित मूल्य से कम मूल्य पर बेचती है तो उसे ‘कटौती पर निर्गमन’कहते हैं।

(iii) प्रीमियम पर निर्गमन-
– जब कम्पनी किसी शेयर को उसके अंकित मूल्य से अधिक मूल्य पर बेचती है तो उसे प्रीमियम पर निर्गमन कहते हैं।

✤ साख निर्धारण (Credit Ration)-
– किसी कम्पनी, व्यक्ति, संस्था तथा सरकार के द्वारा ऋण लेने तथा उसे वापस लौटाने की क्षमता का मूल्यांकन ‘साख निर्धारण’कहलाता है।

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साख निर्धारण से संबंधित संस्थाएँ

(i) स्टैंडर्ड एंड पूअर्स

(ii) मूडीज

(iii) फिच

भारत की साख निर्धारण से संबंधित संस्थाएँ

(i) क्रिसिल (CRISIL)

(ii) इक्रा (ICRA)

(iii) केयर (CARE)

अगर आपकी जिद है सरकारी नौकरी पाने की तो हमारे व्हाट्सएप ग्रुप एवं टेलीग्राम चैनल को अभी जॉइन कर ले

Join Whatsapp GroupClick Here
Join TelegramClick Here

Leave a Comment